राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत के लिए अवसर है कि वह अमेरिका या पश्चिमी जगत को स्पष्ट संकेत कर दे कि वह अब पश्चिमी हितों को प्रभावित करने वाले आतंकवादियों को ही आंख मूंदकर खलनायक के रूप में स्वीकार नहीं करेगा| इससे पूर्व, भारत के पास २६/११ हमले में पाकिस्तान की संबद्धता की बाबत अजमल कसाब के रूप में हाड़-मांस का सबूत था| अब जो सबूत मिला है, वह उस ‘असली षड्यंत्रकारी’ की ओर से मुहैया कराया गया है, जो अमेरिकी धरती से ही जुड़ा है| इसलिए पश्चिमी जगत ‘आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई’ में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मद्देनजर उसकी विश्वसनीयता कीमत पर इसको भी नजरअंदाज कर सकता है| वैसे हमेशा भारतीय लोगों की आम धारणा यकीनन ‘पाकिस्तान’ की हताशा और उसे कठघरे में खड़ा सकने वाली स्थितियों को ज्यादा तवज्जो देती है| निहित स्वार्थों वाले ‘कैंडल ब्रिगेड’ को छोड़कर अधिकांश भारतीयों का मत है कि पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान जिहाद का जनक और एक नाकाम देश का शरारती संगठन है| इसलिए पाकिस्तान की शह पर किए जाने वाले तमाम आतंकी हमलों संबंधी ‘प्रमाणों’ और ‘साक्ष्यों’ का यह समूचा मुद्दा पाकिस्तान के लिए बेमानी है-यह अमेरिका के नेतृत्व में विश्व समुदाय और उसके पश्चिमी सहयोगी देशों के लिए जरूर आंखें खोलना वाला हो सकता है| हेडली का भारतीय अदालत में खुलासा राजनयिक उपलब्धि है|
जैसी कि आज जो स्थिति है, उसके मद्देनजर यह विश्वसनीयता गंभीर सवाल के दरपेश है| भारत को उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान को ज्यादा नहीं तो उतना तो दंडित या प्रतिबंधित करेगा ही जितना कि उसने इराक, ईरान, सीरिया या म्यांमार को किया था| दंडित किए जाने में भेदभाव का रवैया भारत के हितों और सुरक्षा को आघात पहुंचाता है| अभी तक भारत पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई से संभवत: इसलिए परहेज करता रहा कि उसके पक्ष में ‘पश्चिमी समुदाय’ तमाम अपीलें करता रहा है| यह कहते हुए कि अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई को देखते हुए पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई से परहेज किया जाए, लेकिन भारत अब इस प्रकार के विचारों और जरूरतों को अपनी सुरक्षा के आड़े नहीं आने दे सकता| इतनी साफ़ बात के बाद और क्या सबूत चाहिए |
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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