जब पता लग गया है, तो कुछ कीजिये ! शिवराज जी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। खेत की बात और खेती की बात बहुत देर से समझने के लिए उन किसानो की आत्मा की और से धन्यवाद, जो अब इस दुनिया में नहीं है | खेती और किसान के साथ प्रदेश के हर मुख्यमंत्री ने प्रयोग किये और सभी का जुमला किसानों को रंक से राजा बनाने  का रहा है | शिवराज, इसमें कुछ आगे हैं | वे उस सर्वज्ञात नब्ज़ तक पहुंच गये है कि अफसर खेत की बात वल्लभ भवन अर्थात राज्य के सचिवालय में बैठ कर करते हैं | अपनी दृष्टि का थोडा और विस्तार कीजिये विकसित होने वाली हर सडक के किनारे किसके खेत होते हैं ? सबसे ज्यादा अनुदान और मुआवजा घर बैठे किसे मिलता है ? सचिवालय में तैनात किस अधिकारी के पास उसके या उसके परिजनों के पास राजधानी या या अन्य किसी बड़े नगर से लगी हुई  खेती की भूमि नहीं है जिसे उसने कालोनी बनाने या किसी और उपयोग के लिए बंजर छोड़ा हुआ है | किस-किस माननीय मंत्री, सांसद और विधायक या उसके साले- ससुरों तक ने एकड़ में जमीन लेकर मीटर से नाप कर बेचीं या बेच रहे हैं | सरकार सब जानती है | पर कुछ करना नहीं चाहती | ऐसे पार्षद, विधायक, मंत्री और सांसद मौजूद है, जो शपथ पत्र पर अपने को किसान कहते हैं, पर यह नहीं जानते कि ज्वार औए मक्का के भुट्टे में क्या अंतर है ?

सबसे आसान काम है गाल बजाना | अपनी छबि चमकाने के लिए कुछ भी कहें| मुआवजे के अनेको मामले उनके लम्बित हैं, जो किसान हैं | वातानुकूलित दफ्तर में बैठने वालो और रसूखदारों के चेक तो उनके घर पहुंचा कर तहसील का चपरासी बख्शीश ले आया है |

कृषि कर्मन अवार्ड लेते हुये  फोटो से उस विधवा का चूल्हा नहीं जलता जिसके पति ने कर्जे न पटा पाने के कारण आत्महत्या कर ली हो | जब एक रात में शराब नीति बन बिगड़ सकती है, बड़े उध्ध्योगो को छूट मिल सकती है | तो हे! किसान पुत्र खेती खराब होने पर मुआवजा क्यों नहीं बंट सकता ?
  • श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।   
  • संपर्क  9425022703   
  • rakeshdubeyrsa@gmail.com

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