राकेश दुबे@प्रतिदिन। छोटे आयकरदाता और नौकरी से अपना जीवन चलाने वाले वित्त मंत्री अरुण जेटली से वर्ष 2015-17 के बजट में आयकर राहत की अपेक्षा कर रहे हैं। वस्तुत: इस समय व्यक्तिगत आयकर छूट का दायरा एक तो आयकरदाताओं को महंगाई से राहत देने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए, और दूसरे, आयकरदाताओं की क्रयशक्ति बढ़ाकर मांग में वृद्धि करने के लिए। अभी देश में आयकरदाताओं की संख्या करीब साढ़े तीन करोड़ है, जो कुल आबादी का करीब तीन प्रतिशत है। जिनमे लगभग 90 प्रतिशत करदाता उस श्रेणी में आते हैं, जिनकी कर योग्य आय पांच लाख रुपये वार्षिक तक है। कुल आयकर संग्रह में इस श्रेणी की आयकर हिस्सेदारी जबकि 10 प्रतिशत है। इस वर्ग को आयकर में छूट की जरूरत भी है | क्योंकि नौकरीपेशा आयकरदाताओं को मिलने वाली राहत संबंधी अधिकांश छूटों और भत्तों के मापदंड करीब 10-15 साल पहले तय हुए थे। इस वर्ग की अपेक्षा बजट में आयकर छूट सीमा ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर चार लाख रुपये की जानी चाहिए।
इस वर्ग की मांग है कि होम लोन के ब्याज पर छूट की सीमा भी कम से कम तीन लाख रुपये करनी चाहिए। अभी यह दो लाख रुपये है। कर गणना के लिए लीव एनकैशमेंट की सीमा भी बढ़ाकर 10 लाख रुपये की जानी चाहिए। अभी इसकी सीमा तीन लाख रुपये है, जो करीब 16 साल पहले तय की गई थी। ट्रांसपोर्ट अलाउंस और बच्चों की पढ़ाई के खर्च की सीमा भी बढ़ाई जानी चाहिए। यद्यपि आर्थिक विकास दर और सबसे तेजी से बढ़ते मध्यवर्ग की दृष्टि से भारत पहले क्रम पर है, पर आयकर देने वाले वालों के लिहाज से भारत सबसे पीछे है। देश में मध्यवर्ग के 17 करोड़ लोग हैं, पर इनमें से बड़ी संख्या में लोग आयकर नहीं चुकाते। वर्ष 2016-17 में आयकर स्क्रूटनी सीमित करके आयकर बकाये की वसूली पर आयकर अधिकारियों और आयकर कर्मचारियों का ध्यान केंद्रित किया जाए।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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