आन्दोलन: भरपाई और सरकारी अकर्मण्यता

राकेश दुबे@प्रतिदिन। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है की आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्ति का नुकसान एक गंभीर मसला है। गंभीर टिप्पणी है और कड़े कदम का आभास “आंदोलनकारी देश को बंधक नहीं बना सकते और अदालत ऐसे नुकसान की जवाबदेही तय करने के लिए जल्द ही दिशा-निर्देश जारी करेगी।“ सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी गुजरात के पटेलों के आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल की याचिका पर सुनवाई के दौरान की है। यह टिप्पणी इस नजरिये से ज्यादा प्रासंगिक हो जाती है कि अभी तक जाटों के आरक्षण आंदोलन की आंच तप रही है। जाटों के आंदोलन में एक हफ्ते में 25  से ज्यादा लोगों की जान गई और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 20 हजार करोड़ रुपये की सरकारी व निजी संपत्ति का नुकसान हुआ। पटेलों के आंदोलन के साथ तो सरकार ने सख्ती भी बरती, हार्दिक पटेल पर देशद्रोह का मामला तक दायर कर दिया गया। जाटों के आंदोलन में इसके मुकाबले नरमी बरती गई।

कानून-व्यवस्था का पालन करना और लोगों की जान-माल की हिफाजत सरकार का काम है और उससे उम्मीद यह की जाती है कि वह संविधान और कानून के दिशा-निर्देशों के मुताबिक काम करेगी। लेकिन अनुभव यह बताता है कि सरकारों की कार्रवाई के पीछे राजनीतिक नफा-नुकसान का गणित काम करता है। अगर आंदोलन करने वाला समुदाय राजनीतिक रूप से शक्तिशाली और महत्वपूर्ण नहीं है या मौजूदा सरकार के अनुकूल नहीं है, तो हो सकता है कि सरकार उसके शांतिपूर्ण आंदोलन को भी सख्ती से कुचल डाले, पर यदि आंदोलनकारी समुदाय ताकतवर है, तो भले ही वह हिंसक हो जाए और सार्वजनिक, निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाए, सरकार उसके साथ नरमी बरतती रहती है या बहुत मजबूरी में सीमित बल प्रयोग करती है। 

जाटों का पिछला आंदोलन भी हिंसक था और उसमें भी काफी नुकसान हुआ था।जन-धन की हानि की वजह से पश्चिम बंगाल के पहाड़ी जिलों में गोरखा आंदोलनकारियों के आंदोलन करने पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने रोक लगाई थी। ताकतवर समुदाय जब आंदोलन करते हैं, तो उनका उद्देश्य अहिंसा या नैतिकता की ताकत से सरकार को राजी करना नहीं, बल्कि अपने बाहुबल व राजनीतिक रसूख से सरकार को डराना और झुकाना होता है। माना जाता है कि जितनी हिंसा, विध्वंस और असुविधा होगी, मांग के माने जाने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी। दिक्कत यह है कि अक्सर सरकारें इस धारणा को सही साबित करती हैं। जरूरी यह है कि आंदोलनकारियों और सरकार, दोनों की जवाबदेही तय हो, क्योंकि आंदोलनों से होने वाले नुकसान में सरकारी अकर्मण्यता की भूमिका बहुत बड़ी होती है। जनता की सुविधा और संपत्ति की सुरक्षा की फिक्र न आंदोलनकारियों को होती है, न सरकार को। ऐसे में, शायद अदालतें ही आम जनता को कुछ राहत दे पाएं।
  • श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।     
  • संपर्क  9425022703     
  • rakeshdubeyrsa@gmail.com

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