मुकेश कुमार सिंह। ज़्यादातर भारतवासियों को लगता है कि पाकिस्तान हमारा जन्मजात दुश्मन है. पाकिस्तान की पहली और शायद आख़िरी ख़्वाहिश है कि काश! कश्मीर उसका हो जाए? उस नामुराद की ये मुराद तो हज़ार जन्मों में भी पूरी नहीं होगी! लेकिन फ़िलहाल मुझे जानना है कि 22 फरवरी को तड़के हरियाणा के सोनीपत ज़िले के ‘ढाबा कैपिटल’ मुरथल में मेरी बहन, बेटी और बीवी से गैंग रेप करने वाले क्या पाकिस्तानी आतंकवादियों से कम वहशी और बर्बर थे! ये सवाल बहुत बड़ा है क्योंकि हरियाणा पुलिस ने तो हमारी ज़ुबान ये कहकर सिलवा दी कि यदि हमने इंसाफ़ के लिए गुहार लगायी, एफआईआर के लिए ज़िद की तो अपराधी तो कभी सज़ा नहीं पाएँगे लेकिन ‘इंसाफ़ की डगर’ में हमारी ऐसी दुर्दशा होगी जैसी दुष्कर्मों से भी नहीं हुई.
क़रीब दस महिलाओं के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म के सनसनीखेज़ मामले को रफ़ा-दफ़ा करने के लिए हरियाणा पुलिस ने बेजोड़ तरक़ीब अपनायी कि पीड़ित ही अपनी ज़ुबान सिल लें. यानी, जब शिकायत ही नहीं होगी तो कार्रवाई क्यों होगी! इसीलिए अब पुलिस पूरे मामले को झूठा और मनगढ़ंत बता रही है. लेकिन चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित अख़बार ‘द ट्रिब्यून’ की ख़बर ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस संघी को इस क़दर झकझोरा कि उन्होंने स्वप्रेरित (Suo motu) कार्रवाई करते हुए घटना की उच्चस्तरीय जाँच के आदेश दिये हैं.
इसे आरक्षण माँग रहे हरियाणा के क़रीब 30 दंगाई जाटों ने अंज़ाम दिया. ये राज्य में दस दिन चली बदहवास हिंसा, उपद्रव और आगजनी की सैकड़ों वारदातों का हिस्सा थी. सामूहिक बलात्कार का ‘शौर्य’ दिखाना उन दंगाई जाटों के लिए कितनी मामूली बात रही होगी जिन्होंने अपने ही शहर के शहर फूँक डाले हों! उन्हें मेरी बहन-बेटी तो माँस का लोथड़ा ही लगी होंगी!
जाट दंगाईयों ने मुरथल के पास हमारी कारों से सबको उतारकर उसे आग के हवाले कर दिया. मर्दों को एक ओर खदेड़कर औरतों को हसनपुर और कुरद गाँवों के खेतों में घसीट लिया गया. महिलाओं के कपड़े फाड़ डाले गये, उन्हें बर्बरता से मारा-पीटा गया और फिर दंगाईयों ने उनके साथ अपना मुँह काला किया. सारा क़हर झेलने के बाद आधी रात को महिलाओं ने हिम्मत करके पड़ोस के गाँवों में पनाह ली. गाँव वालों ने उन्हें लाज़ ढ़कने के लिए कपड़े दिये. वहीं उन्हें लेकर अमरीक सुखदेव ढ़ाबा पहुँचे. वहाँ औरतें अपनी परिवारों से मिलीं. पुलिस को पूरा ब्यौरा दिया गया. लेकिन पुलिस ने क़ानूनी झंझट का वास्ता देकर पीड़ितों को अपनी और फ़ज़ीहत नहीं करवाने का मशविरा दिया. वहीं पीड़ितों के लिए वाहनों का इंतज़ाम हुआ. उन्हें ज़ुबान सिलकर रखने की हिदायत के साथ उनके ठिकानों पर भेज दिया गया.
पुलिस ने पीड़ितों को ‘अनुभवी सलाह’ दी कि दंगाईयों के ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखवाने से कोई फ़ायदा नहीं होगा. पीड़ितों को सबसे पहले तो मेडिकल टेस्ट की यातना भुगतनी होगी. फिर दूर अपने शहरों से आरोपियों की शिनाख़्त करने और अदालती प्रक्रिया को झेलने के लिए असंख्य चक्कर काटने होंगे, जिसकी वेदना बलात्कार से भी कहीं ज़्यादा अपमानजनक और पीड़ादायी होगी! जीवन में कई बार बुद्धि और विवेक पर अनुभव भारी पड़ता है. इसीलिए पुलिस वालों का अनुभव और उससे जुड़ी चेतावनी मेरे परिवार पर भी भारी पड़ी. हमने अपने ‘दूषित शरीर’ को ही बचाने में भी ख़ैर समझी और मुँह छिपाये अपने घरों को लौट लिये. लेकिन मुरथल और पड़ोसी गाँवों के लोगों के पेट में ये बातें नहीं पचीं. उनकी इंसानियत ने चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित अख़बार ‘द ट्रिब्यून’ के दो पत्रकारों के आगे सारे वाकये को उजाकर कर दिया. फिर सोशल मीडिया की बदौलत ख़बर जंगल के आग की तरह सारी दुनिया में वायरल हो गयी.
‘द ट्रिब्यून’ एक सम्मानित और पुराना अख़बार है. ये किसी कॉरपोरेट या पूँजीपति का कठपुतली मीडिया नहीं है जिसकी ख़बरें निजी स्वार्थों से प्रभावित हो सकती हैं. ट्रिब्यून को पत्रकारों का ट्रस्ट चलाता है. ये उसकी विश्वनीयता का सबसे बड़ा आधार है. मीडिया में प्रतिष्ठित सिर्फ़ वही होता है जिसका लम्बा और निष्कलंक अतीत हो. वैसे ‘थोथा चना बाजे घना’ की तर्ज़ हरेक फ़रेबी मीडिया ख़ुद को सबसे प्रतिष्ठित बताने का दावा करता है. लेकिन असलियत में प्रतिष्ठित सिर्फ़ वही है, जिस पर पाठक या दर्शक भरोसा करते हों. इस लिहाज़ ट्रिब्यून की उपलब्धि जगज़ाहिर है. जबकि हरियाणा पुलिस की साख़ को दुनिया ने बीते दस दिनों में तार-तार होते देखा है. इसीलिए मुरथल पुलिस का ये झूठ हज़म नहीं हो सकता कि सामूहिक बलात्कार की ख़बर ग़लत है.
मुरथल के सामूहिक बलात्कार काँड को रफ़ा-दफ़ा करके हरियाणा की महा-नालायक पुलिस ने अपने उस कलंकित इतिहास में एक और पन्ना जोड़ लिया है, जिसके निकम्मेपन को दुनिया ने बीते 10-12 दिनों में देखा है. पुलिस ने जिस ‘पराक्रम’ से बलात्कार पीड़ितों को ‘जान बची तो लाखों पाये…!’ का सबक सिखाया, उसकी असलियत तो जाँच से ही सामने आएगी. बहरहाल, मेरी बहन-बेटी तथा बीवी ने काले इतिहास को रचे जाते हुए देखा! हमारी ठोस एवं पुख़्ता राय है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने जैसी बेचैनी बीफ़ को लेकर दिखायी थी, उन्हें वैसी परेशानी औरतों की लुटती आबरू, घर, मकान, दुकान, वाहन, स्कूल और अस्पताल के फूँके जाने से नहीं हुई.
खट्टर को यदि हरियाणा में तबाह हो रहे परिवारों और सम्पत्ति की परवाह होती तो न जाने कितनी तबाही को रोकना मुमकिन हो पाता! बलात्कारियों और अन्य देशभक्त अपराधियों को हरियाणा पुलिस भले ही न पकड़ पाएँ लेकिन फ़िलहाल, जघन्य अपराध को सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज़ होने से तो उसने बचा ही लिया. ‘जय हिन्द!’