दीवान ने दरगाह को मस्जिद लिखा और शुरू हो गया भोजशाला विवाद

Bhopal Samachar
भोपाल। मध्यप्रदेश में भोजशाला की वजह से धार एक बार फिर 'तलवार की धार' पर है. तनाव की वजह वसंत पंचमी और शुक्रवार का एक दिन होना है. हिंदू यहां वसंती पंचमी पर पूरे दिन पूजा करने की बात अड़े हुए है. वहीं, मुस्लिम समाज हर हाल में नमाज अता करना चाहता है. एमपी की इस 'अयोध्या' में तनाव की वजह दोनों समाज का भोजशाला पर अपना-अपना दावा जताना है.  

1935 में मिली नमाज की अनुमति
भोजशाल में नमाज और पूजा की व्यवस्था आजादी से पहले शुरू हुई थी. धार स्टेट दरबार के दीवान नाडकर ने 1935 में शुक्रवार को जुमे की नमाज अदा करने की अनुमति दी थीं. इस ऑर्डर में भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी. इसके बाद पूजा और नमाज होना शुरू हुआ था.

1989 के बाद से 'सुलग' रहा धार
धार में भोजशाला विवाद को अयोध्या आंदोलन के बाद हवा मिलने लगी. दोनों समाज के लोग इस पर अपना एकाधिकार दिखाने लगे. इस वजह से पिछले दो दशक से भोजशाला की वजह से धार में कई बार वसंत तनाव लेकर आया.

वसंत पंचमी और शुक्रवार एक दिन होने की वजह से कई बार शहर फसाद की आग में झुलसा. 2013 में भी पूजा और नमाज को लेकर दोनों पक्षों में विवाद हुआ था. इसके चलते पथराव, आगजनी, तोड़फोड़ के चलते हालात बिगड़ गए थे. पुलिस ने लाठीचार्ज और अश्रुगैस के गोले दागकर हालात पर काबू पाया था.

1456 में हुआ था निर्माण
धार में महमूद खिलजी ने भोजशाला के भीतर मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया था. दरगाह बनने के कई सदियों तक यह जगह गैर-विवादित रही. दोनों पक्षों के लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा और नमाज की की परंपरा का निर्वाह करते थे.

सरस्वती सदन के नाम से मशहूर हुआ था भोजशाला
धार को राजा भोज के शासनकाल में पहचान मिली. परमार वंश से ताल्लुक रखने वाले राजा भोज ने 1034 ईस्वी में एक महाविद्यालय के रूप में सरस्वती सदन की स्थापना की थी. राजा भोज की रियासत के दौरान यहां देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी. वाग्देवी की यह प्रतिमा अभी लंदन में है.

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