विश्वविद्यालयों में उपजते विवाद

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जो विवाद खड़ा हुआ है, उसे गंभीरता से लेना होगा । इन दिनों कई विश्वविद्यालयों में जैसे हैदराबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में विवाद जन्मे हैं ।इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि केंद्र में भाजपा की जीत के बाद उससे जुड़ी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद कुछ ज्यादा सक्रिय और आक्रामक हुई है, और कई संस्थानों में मौजूद अन्य ताकतों से उसका टकराव हुआ है। एक मायने में यह स्वाभाविक है, क्योंकि दुनिया भर में वामपंथ की राजनीतिक पराजय के बाद बौद्धिक व शैक्षणिक जगत में उसे चुनौती मिलनी ही थी। बुरा यह है कि यह चुनौती बौद्धिक स्तर पर होने की बजाय अन्य स्तरों पर टकराव के रूप में सामने आई है।जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगना  बहुत गलत है या अगर किसी ने भारत में रहकर भारत की बरबादी की कामना की है, तो उसका  डटकर विरोध किया जाना चाहिए।

जेएनयू हमेशा से तरह-तरह की वामपंथी धाराओं का केंद्र रहा है, बल्कि वह एक तरह से इन विचारों का संग्रहालय है। ऐसा इसलिए कि जेएनयू की सीमा के ठीक बाहर उसके विचारों का असर नहीं है, न देश की व्यापक वामपंथी राजनीति में उसकी कोई बड़ी भूमिका है। लेकिन अकादमिक स्तर पर जेएनयू की अच्छी-खासी प्रतिष्ठा है और वह बरकरार रहनी चाहिए। इस संस्थान पर या इसके छात्रों के हित पर आंच नहीं आने देना चाहिए। वामपंथियों को भी यह समझना होगा कि किसी लोकतांत्रिक देश में इतना बड़ा विश्वविद्यालय कैसे किसी एक विचारधारा से जुड़ा रह सकता है। जरूरी यह है कि दोनों पक्ष अपनी उग्रता कम करें और तार्किक संवाद करें, वरना इस झगड़े में जेएनयू का और छात्रों का दीर्घकालिक नुकसान होगा। लोकतंत्र में तरह-तरह के विचार होते हैं और उनमें से कुछ ज्यादा उग्र भी होते हैं, लेकिन लोकतंत्र की ताकत ही यह है कि वह उग्र विचारों को भी बर्दाश्त करता है और धीरे-धीरे उनकी उग्रता और धार कम कर देता है।
  • श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।   
  • संपर्क  9425022703   
  • rakeshdubeyrsa@gmail.com

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