इंदौर। प्रदेश सरकार ने 90 फीसदी सरकारी स्कूलों को बंद करने का फैसला लिया है। इस मुद्दे पर मंगलवार को डेवलपमेंट फाउंडेशन की बैठक हुई। इसमें शिक्षाविद्, प्रबुद्धजन और अभ्यास मंडल के पदाधिकारियों ने फैसले पर चिंता जाहिर की। पूर्व कुलपति भरत छपरवाल ने कहा कि सरकारी स्कूलों को बंद करना गंभीर विषय है। सरकारी स्कूल तमाम कठिनाइयों के बाद भी गरीबों की शिक्षा का जरिया हैं। उन्हें सुविधा संपन्न बनाने की जरूरत है। नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक रहने की जरूरत है। हमें देखना होगा कि इसके पीछे सरकार का कोई छुपा एजेंडा तो नहीं है।
जन आंदोलन की जरूरत
ट्रेड यूनियन लीडर बसंत शित्रे ने कहा कि जनआंदोलन चलाने की जरूरत है। मुकुंद कुलकर्णी ने कहा कि मूल विषय सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने का होना चाहिए, न कि उन्हें बंद करने का। सरकारी स्कूलों के सामने कई कठिनाइयां हैं, जिस कारण बच्चों की संख्या कम है। बच्चों की स्कूल में संख्या बढ़ाने पर सरकार को जोर देना चाहिए।
सरकार ने शिक्षा को माना व्यवसाय
तपन भट्टाचार्य ने कहा कि विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत सरकार ने शिक्षा को भी व्यवसाय मान लिया है। इसी कारण ऐसी कठिनाई आ रही है। यह फैसला शिक्षा के निजीकरण का प्रयास है। इससे सीधे प्राइवेट स्कूलों को लाभ पहुंचेगा। रामेश्वर पटेल ने कहा कि हमें सरकार से चर्चा कर योजना का प्रारूप प्राप्त करना चाहिए और गुण-दोष के आधार पर आगे कदम उठाना चाहिए। शिक्षक संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों ने कहा कि वे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार शिक्षकों को पोलियो अभियान, मतदाता परिचय, जनगणना जैसे कामों में लगा देती है। शिक्षकों पर पढ़ाने के बजाए अन्य कामों का दबाव ज्यादा रहता है। आलोक खरे ने विषय की जानकारी रखी। संचालन श्याम पांडे ने किया। आभार नेताजी मोहिते ने माना।