जाटों का जाम: शहीद के शव को भी नहीं दिया रास्ता

जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पंपोर इलाके में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए 22 वर्षीय कैप्टन पवन कुमार इकलौते संतान थे. बेटे की शहादत पर पिता राजबीर सिंह ने कहा, 'मेरे पास एक ही बेटा था, मैंने उसे देश और सेना के नाम कर दिया. मुझे इस बात का गर्व है.'

दिलचस्प बात यह है कि कैप्‍टन पवन कुमार उसी हरियाणा की धरती के लाल थे, जहां जाट समुदाय के लोग आरक्षण की मांग के लिए उग्र विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. पवन कुमार जहां देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए, वहीं जाट समुदाय के लोग देश की संपत्‍ति और आम लोगों को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं.

इससे भी ज्यादा दुखद बात यह है कि जाट आंदोलन के चलते ही पवन कुमार का शव रविवार देर रात तक भी उनके घर पर नहीं पहुंच पाया. पवन कुमार भी जाट समुदाय से आते थे. सेना ने जाट आंदोलनकारियों से अपील की है कि वे पवन कुमार का शव गांव पहुंचाने में मदद करें.

जेएनयू के छात्र थे कैप्टन पवन
इतना ही नहीं, कैप्टन पवन कुमार ने जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से पढ़ाई की थी. पवन ऐसे वक्त में शहीद हुए हैं, जब जेएनयू में राष्‍ट्रविरोधी और संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु के नारे लगाए गए, जिसका कुछ छात्र कथित तौर पर समर्थन भी कर रहे हैं.

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