देवी तालाब के अतिक्रमण: 2015 को हुए थे आदेश, आज तक नहीं हटे

आनंद ताम्रकार/बालाघाट। जिले का बहुचर्चित देवी तालाब के अस्तित्व को बचाने के लिये अतिक्रमणकारियों पर की जाने वाली कार्यवाही का ब्यौरा एनजीटी के जस्टिस सोनम पिंटसो वांगडी ने कलेक्टर व नपा से तय सीमा में मांगा है।

पूर्व आदेशों को यथावत रखते हुये देवी तालाब पर किये गये अतिक्रमण को हटाये जाने के लिये समय सयम पर प्रशासन को एनजीटी ने आदेश पारित किये गये है। जिस पर आज दिनांक तक कार्यवाही नही हो पाई इसी बीच कलेक्टर भी बदल गये। कलेक्टर भरत यादव व नगर पालिका को कोर्ट ने 22 अप्रैल तक का समय दिया है। इसी बीच कार्यवाही क्या की गई जिसकी जानकारी कोर्ट को देना है। 

गौरतलब है कि कोर्ट ने तालाब से अतिक्रमण हटाने के आदेश पहली ही दिनांक 2/11/15 व 17/12/15 को जारी कर दिये थे परंतु आज दिनांक तक किसी भी कार्यवाही पर नगर पालिका व जिला प्रशासन ने कोर्ट के आदेश के पालन पर अब तक कोई कार्यवाही नही किया। इस कारण लगातार यह मामला कागजों में दबकर लंबित हो रहा है नगर पालिका व प्रशासन इस विवादित मामले को एक दूसरे पर टालमटोल की कार्यवाही करते नजर आ रहे है।

उन्हें ऐसा भी लग रहा है कि भूमाफिया झूठ राजनैतिज्ञ एवं समाजसेवी के सरंक्षण पाने के चलते उनकी मजबूत स्थिति को भाप कर प्रशासन व नगर पालिका भूमाफिया के आगे नतमस्तक नजर आ रहा है। पूर्व में किशोर समरिते के द्वारा याचिका दायर की गई थी जिस पर किशोर समरिते ने देवी तालाब का अस्तित्व खतरे में होने तथा तालाब को पाटने की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी बाद में यह मामला कमजोर इस लिये पडने लगा, क्योंकि किशोर समरिते एक भी पेशी में नियमित उपस्थित नही रहे किन्तु पार्षद सुरेश कोचर ने हर पेशी तारीख में तालाब को संरक्षित रखने हेतु उपस्थिति दर्ज करायी। उपस्थिति दर्ज होने के कारण कोर्ट ने यह आदेश पारित कर दिया की हस्तक्षेकर्ता की स्थिति से आवेदक के रूप में सुरेश कोचर को मान लिया जाता है। 

उक्त मामले की प्रक्रिया को बनाये रखने उन्हें दखलांदाजी का अधिकार देती है पूर्व आदेशों के पालन पर की गई कार्यवाही से अवगत कराने हेतु 22 अप्रैल तक समय दिया गया है 22 अप्रैल को कार्यवाही जवाबदेही रिपोर्ट नही सौपी जाती है तो कोर्ट की अवमानना पर प्राधिकृत अधिकारियों के खिलाफ इफको कार्यवाही कर सकता है। नियम के मुताबिक कोई भी जलसरंक्षण स्थान पर अतिक्रमण नही किया ता सकता। अगर ऐसा होता है तो उसे तत्काल हटाने का अधिकार अब ग्राम पंचायतों से लेकर नगर पालिका और कलेक्टर को सौपा गया है।

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