भोपाल। राजधानी में 2 मार्च को विधानसभा के सामने लो फ्लोर बस से टकराने के बाद 22 साल का विकास तड़पता रहा। लोग तमाशबीन बने रहे। लेकिन किसी ने उसकी सुध नहीं ली। जैसे-तैसे उसे जेपी अस्पताल पहुंचाया गया तो वहां डॉक्टरों ने देखा तक नहीं और नर्मदा अस्पताल रेफर कर दिया। आखिर विकास ने दम तोड़ दिया।
ऐसी ही कुछ दुर्घटनाओं से सरकार ने सबक लिया और अब वह नया कानून बनाने जा रही है। इसके तहत सड़क दुर्घटना में घायल का इलाज करने से निजी अस्पताल अब इनकार नहीं कर सकेंगे। यदि एेसा किया और घायल की मौत हो जाती है तो अस्पताल पर 5 लाख रुपए का जुर्माना होगा। उसका लाइसेंस भी कैंसिल हो सकता है। इतना ही नहीं, इसके लिए दोषी पाए गए डॉक्टर को भी 1 लाख रुपए का दंड भुगतना पड़ेगा।
लाइसेंस कैंसिल भी हो सकता है
ऐसे कई सख्त प्रावधान गुड सेमेरिटन प्रोटेक्शन बिल में किए गए हैं। गृह विभाग द्वारा तैयार बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक जांच में अस्पताल की लापरवाही सिद्ध होती है तो लाइसेंस कैंसिल भी हो सकता है। इसके लिए गुड सेमेरिटन अथारिटी का गठन किया जाएगा। जिसे शिकायतों की जांच करने और अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार होगा। घायलों की मदद करने वालों को कानून अधिकार देने के कई प्रावधान भी इस बिल में किए गए हैं।
निजी अस्पतालों की जिम्मेदारी भी कानून के दायरे में
गृह विभाग के मुताबिक दुर्घटना के बाद सड़कों पर तड़पते रहते हैं, लेकिन पुलिस और अदालत की झंझटों में फंसने के भय से लोग घायलों की सहायता करने के लिए आगे नहीं आते हैं। ऐसे लोगों की को कानून अधिकार देने के लिए गुड सेमेरिटन बिल-2016 लाया जा रहा है। इसके साथ ही निजी अस्पतालों की जिम्मेदारी भी कानून के दायरे में लाई जा रही है। दरअसल, निजी अस्पताल अज्ञात घायलों का इलाज करने से बचते हैं। क्योंकि उन्हें पैसा मिलने की गारंटी देने वाला कोई मौजूद नहीं रहता है। ऐसे मामलों में गुड सेमेरिटन अथारिटी अपने फंड से अस्पतालों को इलाज में खर्च राशि का भुगतान करेगी। गृह विभाग ने बिल का ड्राफ्ट तैयार कर मंजूरी के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली वरिष्ठ सचिवों की समिति को भेज दिया है। जिस पर जल्दी ही निर्णय होगा।