बलबीर सिंह/ग्वालियर। एफआईआर दर्ज होने पर किसी आरोपी का जीना हराम हो सकता है लेकिन मुरैना में पुलिस ने भ्रष्टाचार के एक आरोपी पर मेहरबानियों की इंतिहा कर दी। आरोपी के खिलाफ सात थानों में 24 अलग-अलग एफआईआर दर्ज है लेकिन पुलिस ने कार्रवाई करना ही भूल गई।
19 साल बाद मामला तब खुला जब खुद आरोपी अपने खिलाफ दर्ज मामले खत्म कराने कोर्ट पहुंचा। अब पुलिस सफाई दे रही है कि मामलों की फाइलें दीमक चट कर गई और जांच क्या हुई थी उसे नहीं पता। 14 मार्च को इस मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है।
वर्ष 1995-96 में मुरैना जिले में स्कूली छात्रों की छात्रवृत्ति में बड़ा घोटाला हुआ था। इस मामले की जांच कराई गई तो आदिम जाति कल्याण विभाग के तत्कालीन मंडल संयोजक एनके नगाईच दोषी पाए गए। इसके बाद 1997 में विभाग ने 7 थानों में 24 एफआईआर दर्ज की गई। आरोपी पर गैरजमानती धाराएं लगाई गईं, लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। आरोपी 10 साल पहले विभाग से सेवानिवृत्त हो चुका है।
वर्ष 2015 में आरोपी ने अपने ऊपर दर्ज कुछ एफआईआर को निरस्त कराने के लिए याचिका दायर की। इस याचिका में बताया गया कि उसके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है, इसलिए उन्हें निरस्त किया जाए। इस पर एकल पीठ ने याचिका की सुनवाई की।
चूंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी केस दर्ज किया गया था। इसके चलते मामला युगल पीठ में पहुंच गया। पीठ ने दर्ज केसों की रिपोर्ट मांगी तो पुलिस की लापरवाही सामने आई। पुलिस ने 24 केसों का स्टेटस हाईकोर्ट में फाइल कर दिया है। लापरवाही को लेकर पुलिस भी संदेह के घेरे में आ गई है।
पुलिस ने दिया जवाब, रिकॉर्ड हुआ गायब
पुलिस ने अपने जवाब में बताया है कि थाने में रखे रिकॉर्ड दीमक खा गई। जो रिकॉर्ड जब्त हुआ था, वह गायब हो चुका है। इसमें जांच नहीं हुई है। सिर्फ केस दर्ज हैं। जो चेक बुक जब्त की थी, वह भी मौजूद नहीं है। जबकि कुछ के बारे में बताया गया है कि कोर्ट में खात्मा लगा दिया है। हालांकि खात्मा कोर्ट ने स्वीकार किया या नहीं, इसकी जानकारी भी पुलिस के पास नहीं है। आरोपी के खिलाफ कैलारस थाने में 7, पहाड़गढ़ और जौरा थाने में 6-6, चिन्नाौनी थाने में 2 और सुमावली, सबलगढ़, बागचीनी में एक-एक एफआईआर दर्ज है।
ऐसे हुआ था घोटाला
वर्ष 1995-96 में आरके उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, कोटरा की छात्रवृत्ति की जांच कराई गई थी। 830 छात्रों के लिए 1 लाख 82 हजार 875 रुपए की छात्रवृत्ति स्वीकृत की गई थी। इनमें से सिर्फ 200 छात्रों को छात्रवृत्ति दी गई थी, लेकिन शेष छात्रों छात्रवृत्ति फर्जी दस्तावेजों के आधार पर निकाल ली गई। इसमें एनके नगाईच को आरोपी बनाकर विभाग ने मामले दर्ज कराए थे।