आजाद अध्यापक संघ फिर विवादों में

Bhopal Samachar
भोपाल। प्रदेश भर में सक्रिय तमाम कर्मचारी संगठनों में आजाद अध्यापक संघ अकेला ऐसा संगठन है जो सबसे कम उम्र में सर्वाधिक विवादित रहा है, फिर चाहे छुट्टी का आवेदन लगाकर अनशन पर बैठने का मामला हो या खुद को सर्व शक्तिशाली मानकर संयुक्त मोर्चा छोड़ने का। इनके पास अपनी कोई लाइन नहीं है। कभी लेफ्ट तो कभी राइट नजर आते हैं। कुछ रोज पहले तक आजाद अध्यापक संघ को प्रदेश का सबसे शक्तिशाली संगठन बताया करते थे, आज बिना दूसरे संगठनों की मदद के लक्ष्य हासिल करना असंभव बता रहे हैं। 

आजाद अध्यापक संघ के संस्थापक सदस्य जावेद खान की नई पोस्ट तो कुछ ऐसा ही बयां कर रही है। पढ़िए क्या लिखा है उन्होने: 

Javed Khan
संविलियन का रामबाण 
सभी संघ का आजाद में विलय कर दो। 
मर्दों की टोली का नेतृत्व हो। 
भरत पटेल एकमेव नेतृत्वकर्ता हो।
अपनी बची कूची ज़िन्दगी का एक माह हमें दे दो।
कोई मोर्चा नहीं। आजाद तेवर हो।
संविलियन तुम्हारे कदमों में डाल देंगे।
नहीं तो गोली मार देना हमें। 
वार्ता में ये कहने की बजाय की आंदोलन हम नहीं करते, केवल यह कह देना की आजाद की कसम 
हक़ से खिलाएंगे फूल दामन ए गुलशन के
मिट्टी का हक़ भी अदा हो जाये फ़ना होने से पहले।

फौरी तौर पर देखें तो लगता है कि जावेद खान ने भरत पटेल के अलावा शेष सबको नामर्द कहा है परंतु थोड़ा गौर करें तो समझ आता है कि जावेद खान ने अपनी कमजोरी छिपाने के लिए विषय को मोढ़ने का प्रयास किया है। संविलियन के लिए सभी संघों के विलय की शर्त रख दी है। ऐसी शर्त जो कभी पूरी नहीं हो सकती और इसके बहाने आजाद अध्यापक संघ संविलियन के लिए आंदोलन को हमेशा टालता रहेगा। ठीक वैसे ही जैसे भाजपा राममंदिर को टालती रही। पहले ईंटें जमा कर लीं, फिर बोले पहले सरकार बनवाओ तब मंदिर बनवाएंगे। 

बात समझ नहीं आती, किसने इन्हे पीले चावल भेजे थे कि एक नया संगठन बना लो। पौरुष तो तब दिखाई देता जब मौजूदा संगठनों में ही सुधार कर लेते। अब जब संगठन बना ही लिया है तो संघर्ष से क्या डरना। इस तरह की बेतुकी शर्तें क्यों लगना। यदि महात्मा गांधी ऐसी शर्त लगा देते कि पहले सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे लोगों को कांग्रेस ज्वाइन कराओ, तब आजादी दिलाएंगे तो....?

हर संगठन की अपनी नीतियां हैं, अपने सिद्धांत हैं। यदि कोई अवसरवादी है तो वो है, यदि कोई चापलूस है तो है, यदि कोई एक टिकिट के लिए आंदोलन बेच सकता है तो वो भी है। इसी को लोकतंत्र कहते हैं। यदि तुम सही हो तो अपने सही होने का प्रमाण दो। यदि संख्या में सिर्फ 4 बचे तो भी अध्यापक हित में संघर्ष करो और प्रमाणित करो कि तुम नि:स्वार्थ हो और संघर्ष करने की हिम्मत रखते हो। उपवास कर सकते हो, जेल भी जा सकते हो। 

खुद को प्रमाणित करो, दूसरों पर शर्त थोपकर अपनी कमजोरी क्यों छुपाना। कम से कम आजादी के उस मतवाले का नाम तो बदनाम मत करो। 

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