दवाओं पर पाबंदी, सरकारी घालमेल का खेल

राकेश दुबे@प्रतिदिन। दवाओं पर पाबंदी क्यों जैसे विषय पर कई मित्रों ने मुझसे सवाल किये | मुख्य प्रश्न यह पाबंदी  क्यों और इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? मेरा उत्तर सरकार है, पर तर्क सहित |सैकड़ों दवाओं को बनाने और बेचने पर पाबंदी पर सबसे पहली जिज्ञासा यही है कि सालों-साल सरकार की नाक के नीचे खुल्लमखुल्ला बेची जाने वाली इन दवाओं में ऐसी क्या खराबी आ गई है, जो इन्हें बेचने-खरीदने पर पाबंदी लगाने की नौबत आई है। एफडीसी यानी फिक्स्ड-डोज कॉम्बीनेशन कहलाने वाली ये दवाएं गली-मोहल्लों के मेडिकल स्टोर से लेकर आम जनरल स्टोर तक में आसानी से मिल जाती हैं। 

खांसी-जुकाम जैसे मामलों में तो इन पर लोग आंख मूंद कर भरोसा करते आए हैं। पर अब बताया जा रहा है कि इन्हीं दवाओं की वजह से हमारे शरीर की रोगाणुरोधी प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती रही है। कुछ मामलों में टॉक्सिसिटी (दवाओं का विषैला प्रभाव) ज्यादा होने के कारण कई महत्त्वपूर्ण अंगों के नाकाम होने का खतरा भी पैदा हो जाता है। मोटेतौर पर ये ऐसी दवाएं हैं जिनमें दो या इससे अधिक दवाओं का निश्चित मात्रा (फिक्स-डोज कॉम्बीनेशन) में मिश्रण होता है। इन दवाओं के सेवन का फौरन असर तो लोग महसूस करते हैं लेकिन थोड़े समय बाद इनके हानिकारक प्रभाव पैदा होने की बात अब बताई जा रही है। जैसे कहा जा रहा है कि इस तरह के एंटीबायोटिक के ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल से सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर होता है और ये लिवर के लिए भी हानिकारक हैं। एफडीसी से तैयार होने वाले एंटीबायोटिक के ज्यादा सेवन से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपनी जांच में कई विटामिन मिश्रणों (कॉम्बीनेशंस) को भी अविवेकपूर्ण पाया। इन दवाओं के खतरों को भांपते हुए वर्ष 2013 में स्वास्थ्य से संबद्ध संसदीय समिति ने इस मामले में कड़ा रुख अख्तियार किया था और इन्हें सेहत के लिए खतरनाक बताते हुए बाजार से बाहर का रास्ता दिखाने को कहा था।

समिति का यह भी कहना था कि कई कॉम्बीनेशंस में तो एक से ज्यादा एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया गया है, जो कि अवैज्ञानिक होने के साथ ही बैक्टीरिया और वायरस में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकता है। सबसे उल्लेखनीय तो सरकार की यह दलील है कि इनमें से कई दवाओं को दवा नियामक संस्था सीडीएससीओ से मंजूरी ही नहीं हैं और कंपनियां हानिकारक मिश्रण के बावजूद इनकी धड़ाधड़ बिक्री करती रहती हैं। पर जरा यह देखा जाए कि आखिर इन दवाओं के खतरों को महसूस करने में कितनी अधिक देरी की गई है। जैसे दवा कंपनी प्रॉक्टर एंड गैंबल ने प्रतिबंध के बाद अपने जिस लोकप्रिय ब्रांड विक्स एक्शन-500 एक्स्ट्रा के निर्माण और बिक्री पर रोक लगाने की कार्रवाई की है, उसे भारत के दवा बाजार में आज से तैंतीस साल पहले उतारा गया था। इसी तरह प्रतिबंधित की गई अन्य दवाओं में कोरेक्स और फेनेसिडिल बाजार में पच्चीस साल से बिक रही थीं और लोग इनका धड़ल्ले से सेवन कर रहे थे। सवाल है कि आखिर ढाई-तीन दशक तक स्वास्थ्य मंत्रालय क्या कर रहा था, जबकि इन्हीं दवाओं की बिक्री पर कई मुल्कों में पांबदी लगी हुई थी? क्या सरकारें इस मामले में जान-बूझ कर खामोश थीं? उल्लेखनीय है कि इन सैकड़ों-हजारों दवाओं को बनाने की इजाजत भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीसीजीआई) कार्यालय से नहीं ली गई थी और राज्यों ने अपने स्तर पर ही इन्हें बनाने की इजाजत दवा कंपनियों को दे दी थी। है, न सरकारें दोषी | 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!