भोपाल। मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी द्वारा संविदा अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए बनाई गई नीति को लेकर विवाद हो रहा है। इंजीनियरों और कर्मचारियों के संगठनों का आरोप है कि बिजली वितरण से जुड़ी दो कंपनियों के एमडी इसे नहीं मान रहे हैं। उनका तर्क है कि यह नीति नए संविदा इंजीनियरों व कर्मचारियों पर ही लागू होगी।
पावर मैनेजमेंट कंपनी ने हाल ही एक नीति बनाई है। इसमें संविदा कर्मचारियों को साठ साल तक काम करने का प्रावधान किया गया है। इसके पीछे बेहतर परफारमेंस को आधार बनाया गया है। महासंघ के साथ ही यूनाइटेड फोरम फॉर पावर एम्पलाइज एवं इंजीनियर्स ने कंपनियों के रवैये पर एतराज जताया है। मध्य क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनियों ने हाल ही में 42 संविदा इंजीनियर्स को निकाल दिया है। कई ऐसे इंजीनियरों व कर्मचारियों को अगले हफ्ते निकालने की तैयारी है। इसे लेकर महासंघ और फोरम तीन दिन तक हड़ताल कर चुके हैं। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर का कहना है कि संविदा इंजीनियरों व कर्मचारियों की भर्ती विज्ञापन निकाल कर की गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने घोषणा-पत्र जन संकल्प में ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों को रेगुलर करने का वादा किया था। यदि कंपनियों ने इन्हें निकालने संबंधी फैसला वापस नहीं लिया तो 29 मार्च से आंदोलन होगा।