आतंकी हमलों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई जरूरी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में हुए हमलों और 600 आईएएस लडाको क यूरोप में घुसपैठ को यूरोप की अवधारणा पर प्रतीकात्मक हमले की संज्ञा दी जा सकती है । यह कयास लगाया जा रहा है कि बु्रसेल्स में आतंकवादी वारदात पेरिस आतंकवादी हमले के सरगना सालेह अब्दे सलाम की गिरफ्तारी की प्रतिक्रिया में है। इस हमले से यह भी साफ हो गया है कि अब पश्चिम एशिया में आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई यूरोप की, बल्कि पश्चिम की लड़ाई बन गई है। यूरोप में सीरिया से बड़ी संख्या में शरणार्थियों के पहुंचने और लगातार बड़े आतंकवादी हमलों के बाद यह साफ है कि पश्चिम एशिया का गृह युद्ध यूरोप में पहुंच चुका है और यह युद्ध लड़ना व जीतना उसकी  मजबूरी हो गई है | इतिहास के काफी लंबे दौर तक यूरोप बाकी दुनिया की समस्याओं से आम तौर पर निरपेक्ष रहा है, बल्कि बाकी दुनिया यूरोप में हुए बदलावों से प्रभावित होती रही है। पिछली सदी में यूरोप को हिला देने वाले दो विश्व युद्धों की जड़ें यूरोप में ही थीं। पश्चिम एशिया की समस्या काफी हद तक उपनिवेशवाद से जुड़ी है, जिससे अब यूरोप को जूझना पड़ रहा है।

इस आतंकवादी वारदात ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यूरोपीय देशों में उग्र वहाबी विचारधारा व आतंकवाद के समर्थक नौजवानों का अच्छा-खासा जमावड़ा बन गया है। जो मुस्लिम नौजवान वहां रह रहे हैं, उनमें से काफी पश्चिमी संस्कृति के विरुद्ध कथित शुद्धतावादी इस्लामी विचारधारा के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। पश्चिमी नौजवानों को अपनी ओर आकर्षित करना और उन्हें अपने खतरनाक खेल में शामिल करना, आईएसआईएस के एजेंडे में काफी प्रमुख स्थान रखता है। अगर किसी गरीब अफ्रीकी देश में आतंकवादी वारदात होती है, तो उसका बहुत प्रचार नहीं होता, लेकिन अगर किसी संपन्न यूरोपीय देश या अमेरिका में कोई आतंकवादी घटना होती है, तो अंतरराष्ट्रीय प्रचार के रूप में उसका फायदा इस आतंकी संगठन को मिलता है।

पुरातनपंथी और शुद्धतावादी विचारधारा वाले आतंकवादी संगठनों के लिए पश्चिमी लोकतंत्र और आधुनिक, उदार जीवनशैली सबसे बड़े दुश्मनों में है। आधुनिक सूचना तकनीक का प्रभावशाली इस्तेमाल करके आईएस जैसे आतंकी संगठन सारी दुनिया में ऐसे नौजवानों को बरगला रहे हैं, जो आम तौर पर सामान्य नौजवानों जैसा जीवन जीते हैं, लेकिन अपने आकाओं के कहने पर कभी भी आतंकवादी वारदात कर सकते हैं।इस खतरे से निपटने का एकमात्र तरीका यह है कि सारी दुनिया के देश अपने मतभेद भुलाकर एकजुट हों और आईएस व अल-कायदा जैसे संगठनों के खिलाफ निर्णायक और संगठित जंग छेड़ दें। समर्थकों के दिमाग में इन संगठनों ने अजेय होने का जो भ्रम बैठा है, वह जब तक टूटेगा नहीं, उनका मोहभंग नहीं होगा।एक मायने में ये आतंकी हमले पश्चिम एशिया के संघर्ष में ठहराव की स्थिति से भी जुड़े हैं। सीरिया व इराक में आईएस को रोक दिया गया है, बल्कि कई जगह उसे हार का सामना भी करना पड़ा है। ऐसे में, समर्थकों का मनोबल बढ़ाने के लिए वह पश्चिमी देशों पर ऐसे और हमलों को अंजाम दे सकता है। इस समस्या का असली हल तो आईएस को इस हद तक खत्म कर देना है कि वह किसी कथित खिलाफत का सपना बेचने के काबिल ही न रहे। यूरोप की शरणार्थी समस्या का हल भी सीरिया व इराक का गृह युद्ध खत्म होने में ही है, ताकि शरणार्थी अपने देश लौट सकें।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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