राकेश दुबे@प्रतिदिन। सरकार ने छोटी बचत योजनाओं पर दिए जाने वाले ब्याज की दरों में 1.3 प्रतिशत तक की कटौती की है। पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) की ब्याज दर में 0.60 प्रतिशत, सुकन्या समृद्धि की ब्याज दर में भी 0.60 प्रतिशत, किसान विकास पत्र (केवीपी) की ब्याज दर में 0.90 प्रतिशत, पांच साल की नेशनल सेविंग स्कीम (एनएससी) की ब्याज दर में 0.40 प्रतिशत, डाकघर के एक उत्पाद पर दिए जा रहे ब्याज की दर में 1.30 प्रतिशत आदि की कटौती की गई है। एक अप्रैल से लागू की जाने वाली नई व्यवस्था के तहत छोटी जमा योजनाओं पर दिए जा रहे ब्याज की दरों की समीक्षा हर तीन महीने पर की जाएगी। इस तरह, अब हर तीन महीने पर इन ब्याज दरों में बदलाव किया जा सकेगा।पर यह सब क्यों ?
सरकार का तर्क है कि इससे छोटी जमा योजनाओं पर दिए जाने वाले ब्याज की दरों को सरकारी प्रतिभूतियों के बाजार भाव के अनुरूप रखा जा सकेगा , लेकिन जानकारों के मुताबिक ऐसा निर्णय कारोबारियों के हित को साधने के लिया गया है। इस निर्णय के तुरंत बाद कारोबारी कर्ज की ब्याज दरों में कटौती की मांग भी करने लगे हैं।
दरअसल, काफी समय से छोटी बचत योजनाओं पर मिलने वाले ज्यादा ब्याज को, कर्ज ब्याज दर में कटौती की राह का सबसे बड़ा रोड़ा माना जा रहा था। कहा जा रहा था कि छोटी बचत योजनाओं पर ज्यादा ब्याज देने के कारण बैंक, रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में कटौती के बावजूद उसका फायदा कारोबारियों को नहीं दे पा रहे थे ।कारोबारियों व सरकार के दबाव में बैंक एक लंबे अरसे से छोटी बचत योजनाओं जैसे, पीपीएफ, एनएससी, केवीपी आदि में दिए जा रहे ज्यादा ब्याज की दरों को लेकर अपने एतराज सरकार के समक्ष रख रहे थे। सुकन्या समृद्धि योजना व बुजुर्गों के लिए चलाई जा रही छोटी जमा योजनाओं में दिए जा रहे ब्याज की दरों को लेकर भी वे अपनी आपत्ति जता रहे थे। गौरतलब है कि बैंक महंगी जमा लागत वाली पूंजी के बूते कर्ज दर में कटौती नहीं कर सकते हैं। पूंजी की लागत सस्ती होने पर ही ऐसा करना उनके लिए संभव हो सकता है।
बहरहाल, सरकार के ताजा फैसले के आलोक में कहा जा रहा है कि छोटी योजनाओं में दी जा रही ब्याज दरों में कटौती करने के बाद बैंक अपने आधार दरों में आधा फीसद से एक फीसद तक कटौती कर सकते हैं। आधार दर वह न्यूनतम कर्ज दर है, जिससेकम दर पर बैंक कर्ज नहीं दे सकते हैं।
अर्थव्यवस्था में छाई मंदी को दूर करने व बैंकिंग उद्योग को संबल प्रदान करने के लिए कर्ज वृद्धि दर का बीस प्रतिशत होना जरूरी है, लेकिन फिलहाल सरकारी बैंक बढ़ते एनपीए के कारण कर्ज देने से परहेज कर रहे हैं। एनपीए मद में बैंकों को हर साल ज्यादा प्रावधान करना पड़ रहा है, जिसके कारण बैंकों को पूंजी की कमी पड़ जाती है। बेसल तृतीय के विविध मानकों को पूरा करने के लिए बैंकों को कम से कम आठ प्रतिशत इक्विटी कैपिटल रेशियो रखना होगा और पूंजी पर्याप्तता अनुपात को नौ प्रतिशत से बढ़ा कर साढ़े ग्यारह प्रतिशत करना होगा, जिसके लिए सरकारी बैंकों को पच्चीस हजार करोड़ से छत्तीस हजार करोड़ रुपए तक अपनी पूंजी का दायरा 2019 तक बढ़ाना है।बैंक कर्ज दर में कटौती करने के लिए विवश हो जाएं इसके लिए रिजर्व बैंक 1 अप्रैल, 2016 से नई आधार दर को अमली जामा पहनाने जा रहा है।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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