सरकारी शिक्षा: पहले बदनाम करो फिर बर्बाद करो की नीति पर काम कर रही है सरकार

सम्मानीय साथियो,
आप भी अनुभव कर रहे होंगे की भारत सरकार और प्रदेश सरकार शासकिय स्कूलों को नेस्तनाबूत करके निजी शिक्षण संस्थाओं को बढ़ावा दे रही हैं, जिसमे गरीब मजलूम और वंचित वर्ग के  तथा मीडिल क्लास जनता अपने बच्चों को उन खर्चीले स्कूलों में पढ़ा नही पा रही है या पेट काटकर मोटी फीस भुगतान कर पढ़ाने के लिए मजबूर हो रही है। हम इन सरकार के आकाओं से भारत के प्रधानमन्त्री केंद्रीय मंत्री मण्डल, प्रदेश के मुख्यमंत्री मंत्रियो, सांसदों, विधयाकों और प्रशासन के अधिकारी जो एक रूपये भी सरकार के खजाने से प्राप्त करते हैं, वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं जहां गरीब वंचित वर्ग के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते है। अध्यापक संविदा गुरु जी अतिथि शिक्षक अध्यापन कार्य कराते है। तभी ये असमानता का अंत होगा और फिर से भारत विश्व गुरु कहलायेगा।

सरकार के इस संविधान विरोधी जन विरोधी गरीब विरोधी शिक्षा विरोधी, राष्ट्र विरोधी इस कृत्य का हम सब विरोध करे, अन्याय की जड़ में सरकार की उदारवादी नीतिया हैं, जिन्हें मप्र सहित केंद्र व अन्य राज्यों की सरकारें देश में जबरन लागू कर रही हैं। वैश्विक पूँजी के इशारे पर विश्व बैंक और अंतर्राष्टीय मुद्रा कोष जैसी एजेंसी द्वारा थोपी गयी इन नीतियों के चलते सरकारें सोची समझे तरीको से सरकारी स्कूल व्यवस्था की गुणवत्ता में गिरावट लाकर इनकी विश्वासहीनता पैदा कर रही हैं। इन नीतियों का एकमात्र उद्देश्य है शिक्षा में बाजारीकरण (पीपीपी मोड़) और मुनाफ़ा खोरी के रास्तो को खोलना।

नियमित शिक्षको के पदों में लगातार कटौती, और पैरा टीचर, संविदा शिक्षक, अतिथि शिक्षक अध्यापक गुरु जी आदि श्रेणियों में बाँट कर कम वेतन व अनियमित तौर पर शिक्षकों की नियुक्ति करके स्कूल व्यवस्था को अस्थिर करना। इनके नीतिगत एजेंडे का अभिन्न हिस्सा है हमारा स्पष्ट मत हैं की मप्र सरकार शिक्षा के निजीकरण करने के पीछे का असल कारण सरकार की वित्तीय मजबूरी नही बल्कि वैश्विक पूंजी की वैचारिक गुलामी है। इसलिए वो एक सोची समझी रण नीति के तहत सरकारी शिक्षा को अपने इस सूत्र के मुताबिक पहले बदनाम करो फिर बर्बाद करो और कोड़ियो के दाम बेच दो। जैसे राज्य परिवहन निगम और विधुत मंडल का हाल हुआ है । 

राष्ट्र के सम्पूर्ण विकास एवम् सामजिक समरसता का ढिंढोरा पीटने वाले महारथियों को सचेत होकर शिक्षा में व्याप्त आर्थिक विषमताओं पर ध्यान देना ही होगा । यह कैसी विडम्बना है की विद्यालयो में शिक्षा देने वाला शिक्षक शिक्षा विभाग का ही नही हैं । किस तरह अपने उत्तर दायित्वों को पूर्ण कर सकेंगे ये अध्यापक , और कैसे ज्ञान प्राप्त करेगा यह देश अपने उच्चत्तम लक्षय को ?

और अंत में राज्य अध्यापक संघ मप्र देश प्रदेश के चिंतको , विचारको, मनीषियों, कानूनविदों, शिक्षविदों , छात्र यूनियन और शिक्षा जगत से जुड़े कर्मचारियों से हमारा विनम्र अनुरोध है की शिक्षा जगत से जुडी इन व्याप्त कमियों के खिलाफ जोरदार संघर्ष करें। इस नीति निर्धारण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर शिक्षा के निजीकरण को रोकने हेतु जो शिक्षा क्रांति यात्रा मप्र में जारी है उसका तन मन धन से सहयोग करे। 

भवदीय 
एच एन नरवरिया
प्रमुख मीडिया प्रभारी 
राज्य अध्यापक संघ मप्र

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