एक तरफ़ विभाग के अधिकारीयो का अर्जेंट आदेश आता है कि फलाँ मिशन, किसी अभियान, कोई योजना का काम आज ही पूरा करके शाम तक रिपोर्ट करो बेचारा शिक्षक भले ही कोई दूसरे सर्वे या ड्यूटी मे जुटा हो, दूसरी तरफ जब भी शिक्षक हित के किसी भी मुद्दे पर जैसे वरिषठता, क्रमोन्नति, पदोन्नति इत्यादि पर त्वरित कार्यवाही की बात आती है तो वे ही अधिकारी तमाम व्यस्तताएं गिनाकर महीनो, सालों तक काम टाल जाते है। भ्रष्टाचार उपर से सहना पड़ता है सो अलग।
ये आज ऐसे हालात क्यू बन रहे है जबकि तमाम शिक्षक -संगठन एवं जनप्रतिनिधि मौजूद है खुद ही माला पहनने के अनेको नज़ीर, श्रेय लेने वाले तमाम कर्मचारी नेता अपनी ढपली और दुकान लेकर घूम रहे हैं। वाट्स अप और फेसबुक पर पोस्टे देखकर इनके कागजी संघर्ष को नमन करने का मन करता है। इनके कार्यक्रमों मे मंच से बताया जाता है कि इनके कार्यशैली के कारण कोई विभागीय समस्या बची ही नही है। हक़ीकत कुछ और ही बयां करती है कि प्रदेश से लेकर संकुलो तक इतनी समस्याएं व्याप्त हैं कि शिक्षक सन्वर्ग त्राही त्राही कर रहा है। वित्तीय, मानसिक और प्रशासनिक रुप से व्यथित होने से शिक्षण की गुणवत्ता बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। कुछ विभागीय नितियों का दोष, गैर शैक्षणिक कार्यो का बोझ, कुछ अयोग्य साथियों की कर्तव्य के प्रति बेपरवाही और आरटीई का 25% शुल्क प्रतिपूर्ति अशासकीय शालाओं को बच्चे उपहार मे देने के कारण प्रदेश की अनेको शालाओ मे शून्य दर्ज संख्या पहुच गयी है और शालाये मर्ज करके बंद की जा रही हैं। सभी संघो की मौन स्वीकृति समझ से परे है।
सत्य प्रकाश त्यागी,
जिला अध्यापक प्रमुख,
एमपी शिक्षक संघ अध्यापक प्रकोष्ठ,नरसिंहपुर