राकेश दुबे@प्रतिदिन। आधार बिल जल्दी ही कानून की शक्ल ले लेगा। लेकिन बिल को पास कराने के लिए ऊपरी सदन में बहस और विमर्श की उपेक्षा हुई।आधार बिल सब्सिडी पाने के लिए आधार नंबर को अनिवार्य बनाता है। इसका असर कई सार्वजनिक योजनाओं पर पड़ेगा। यह सब्सिडी को लाभान्वितों तक सही तरीके से पहुंचाने, पारदर्शिता लाने और शासन की दक्षता सुधारने की दिशा में जरूर बड़ा कदम है। अब तक देश के 98 करोड़ नागरिकों को आधार नंबर मिल चुका है। 16.5 करोड़ कुल लाभान्वितों में से 11.10 करोड़ उपभोक्ताओं ने अपने एलपीजी खाते से आधार लिंक करा लिया है। आधार अनिवार्य हो जाने के बाद घरेलू गैस सिलिंडरों का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हो सकेगा। सिलिंडरों का व्यावसायिक इस्तेमाल करने वाले कारोबारियों को अब बाजार मूल्य पर सिलिंडर खरीदना होगा। इस कारण से कमर्शियल गैस सिलिंडर की बिक्री बढ़ने की संभावना है। इसी तरह, आधार से जुड़ जाने के बाद जन-वितरण प्रणाली में भी पारदर्शिता आ सकेगी और वितरित किए जाने वाले अनाज, लाभान्वितों की जानकारी, वितरणकर्ता की सूचना जैसी तमाम सूचनाएं मिल सकेंगी। मनरेगा में भी घोस्ट वर्कर्स (फर्जी मजदूर) की संख्या घटेगी।
मगर आधार के सामने बड़ी चुनौती गोपनीयता का मुद्दा है। बेशक इसमें बायोमिट्रिक सूचनाओं को किसी भी तरह से साझा करने से रोकने के प्रावधान हैं, मगर इस बिल की धारा ३३ राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में केंद्र सरकार को इसकी गोपनीयता भंग करने का अधिकार देती है। आखिर एक अरब से अधिक लोगों की बायोमिट्रिक सूचना (दुनिया का शायद सबसे बड़ा डेटाबेस) के सुरक्षित रहने की कितनी गारंटी है? फरवरी, २०१५ तक सरकार आधार पर ५३६० करोड़ रुपये खर्च कर चुकी थी। ऐसे में अब इसे रद्द करना करदाताओं की गाढ़ी कमाई को डुबोना ही होगा।
लिहाजा इसमें गोपनीयता को लेकर जवाबदेही तय होनी चाहिए और नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए। साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि फर्जी आधार नंबर जारी नहीं होंगे व योग्य लाभान्वितों का इसमें समावेश होगा। यह स्थानीय प्रशासन की सक्रिय भूमिका के बगैर संभव न हो सकेगा।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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