राकेश दुबे@प्रतिदिन। आजादी के लगभग सात दशक होने वाले हैं, फिर भी भारत में जाति-प्रथा कितनी मजबूत है और दलितों के लिए जीवन कितना कठिन है। तमिलनाडू में एक दलित युवक अपने से ऊंची जाति की एक युवती से शादी करने के कारण मौत के घाट उतर दिया गया | गंभीर बात यह है कि इस तरह की जातिवादी हिंसा बजाय घटने के, बढ़ रही है। तमिलनाडु ब्राह्मणवाद विरोधी बड़े आंदोलनों का केंद्र रहा है और इसकी वजह से वहां बड़े सामाजिक परिवर्तन भी हुए हैं। खासकर के कामराज के मुख्यमंत्री रहते हुए दलितों व पिछड़ी जातियों के उत्थान और उनके बच्चों को शिक्षा देने की बहुत परिवर्तनकारी कोशिश तमिलनाडु में हुई। के कामराज को स्कूलों में मिड-डे मील कार्यक्रम का प्रवर्तक भी माना जाता है। कामराज ने जाति-भेद खत्म करने के लिए सभी स्कूली बच्चों को एक जैसा यूनिफॉर्म मुफ्त देने की योजना भी लागू की थी। इन सभी वजहों से तमिलनाडु का तेजी से सामाजिक विकास हुआ और जाति आधारित भेदभाव भी घटे। जातिवाद की भूमिका फिर सत्तर के दशक में बढ़नी शुरू हुई, जब राजनेताओं ने जातियों का वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इस दौरान कई जाति आधारित संगठन और राजनीतिक पार्टियां बनीं और दलितों पर अत्याचार भी बढ़े।
इस बीच राजनीति में कई पिछड़ी और अति-पिछड़ी जातियां सबसे ज्यादा ताकतवर हो गई थीं और इन्होंने आत्मसम्मान की चाह रखने वाले दलितों का हिंसक विरोध शुरू किया। यह जातिगत विद्वेष अब अपने चरम पर है, लेकिन तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने स्वार्थ की वजह से इसके खिलाफ कदम नहीं उठातीं। तमिलनाडु के कुछ दक्षिणी जिलों में स्थिति यह है कि स्कूलों में बच्चे कलाई में अलग-अलग रंग के धागे या पट्टियां बांधकर आते हैं, जिनसे उनकी जाति पहचानी जाए। यहां तक कि माथे पर तिलक या बिंदी या बनियान का रंग भी जाति के अनुसार होता है। इस वजह से स्कूलों में ही बच्चे जाति आधारित कथित दुश्मन और दोस्त की पहचान करना सीख जाते हैं। यह स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि पिछले दिनों आई एक खबर के मुताबिक, एक जिले के कलेक्टर ने स्कूलों में कलाई पर किसी भी रंग के धागे या पट्टियां बांधने पर पाबंदी लगा दी, लेकिन ऐसे आदेशों पर अमल करवाना तकरीबन नामुमकिन होता है।
एक शताब्दी पहले पिछड़ी जातियां व दलित, सवर्णों के वर्चस्व के खिलाफ एकजुट थे, लेकिन अब दलित उन्हीं पिछड़ी जातियों की हिंसा और अत्याचार के शिकार हो रहे हैं। कमोबेश यही स्थिति पूरे देश में है, जिसकी वजह से समाज के सबसे निचले पायदान पर मौजूद समूह अब भी उस बराबरी से वंचित हैं, जिसका वादा हमारे गणतंत्र में किया गया है।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
- संपर्क 9425022703
- rakeshdubeyrsa@gmail.com