
सूत्र बताते हैं कि विभाग ने अध्यापकों का वेतन हेड सेंट्रल सर्वर से जोड़ा है। यह काम 25 मार्च से 20 अप्रैल तक चला। वेतन बांटने में हुई देरी का खामियाजा एक लाख अध्यापकों को अब भी भुगतना पड़ रहा है।
कई परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं तो कई को कर्ज लेकर रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना पड़ रही हैं। ऐसे में बैंकों से कर्ज लेने वाले अध्यापकों की हालत ज्यादा खराब है। उन्हें इस माह दूसरे से पैसे उधार लेकर किस्त जमा करना पड़ी है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में तीन लाख अध्यापक हैं।
संगठन पदाधिकारी परेशान
अध्यापकों को वेतन न मिलने से अध्यापक संगठनों के पदाधिकारी भी परेशान हैं। वे कई बार विभाग के आला अफसरों से मिल चुके हैं, लेकिन हर बार आश्वासन मिलता है। अधिकारी हर बार जल्द वेतन देने की बात करते हैं। शासकीय अध्यापक संगठन के प्रदेश संयोजक जितेंद्र शाक्य बताते हैं कि रीवा, शहडोल, खरगोन सहित अन्य जिलों के अध्यापकों को अब तक वेतन नहीं मिला है। वे कहते हैं कि पहले तो वार्षिक लेखाबंदी के कारण वेतन देने में देरी की बात की जा रही थी। अब कोई स्पष्ट बात नहीं कर रहा है। उन्होंने बताया कि राजधानी में भी चार संकुलों के अध्यापकों को वेतन नहीं मिला है।
इसलिए हुई वेतन में देरी
विभाग के अपर संचालक (वित्त) मनोज श्रीवास्तव के मुताबिक वित्त विभाग ने अध्यापकों के बजट मद में परिवर्तन किया है। वे बताते हैं कि ग्लोबल व्यवस्था बनाने के उद्देश्य अध्यापकों को ट्रेजरी के सेंट्रल सर्वर से जोड़ा गया है, ताकि भविष्य में वेतन वितरण में देरी न हो। इस वजह से वेतन वितरण में कुछ देरी हुई है।