गौर करिएगा कि आपसे भी अगर किसी कारणवश किसी एक लोन पर डिफॉल्ट हो गया हो, तो ध्यान रखिएगा कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि लेंडर आपको पूरी तरह से धर ले। ऐसे में आपके लिए ये जानना बेहद जरूरी होगा कि ऐसे भी नियम हैं, जो आपके लेंडर की भी ऐसी हरकतों पर लगाम लगाते हैं। कानून ऐसी स्थिति में आपको भी कुछ अधिकार देता है, जिसका इस्तेमाल आप अपने हित में कर सकते हैं। आइए जानें क्या हैं वो कानूनी अधिकार...।
1 . ये अधिकार है नोटिस का
आपको हर स्थिति में ध्यान रहे कि डिफॉल्ट कर देने से आपके अधिकार छीने नहीं जा सकते। न ही तो आपको अपराधी बनाया जा सकता है। बैंकों की ओर से निर्धारित प्रोसेस का पालन कर खुद की बकाया रकम को वसूल करने के लिए आपकी संपत्ति पर कब्जा करने से पहले आपको लोन चुकाने का समय दिया जाना चाहिए। बैंक की ओर से आमतौर पर इस तरह की कार्रवाई सिक्योरिटाइजेशन एंड रिस्कंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंट्रेस्ट (सरफेसी एक्ट) के तहत की जाती है। ऐसे में अब अगर बॉरोअर का अकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) की कैटेगरी में डाला गया है, जहां भगुतान 90 दिनों या इससे भी ज्यादा समय से बकाया है तो लेंडर को पहले डिफॉल्टर को 60 दिनों का नोटिस देना होता है।
2 . सही वैल्यू जानने का अधिकार
आप अगर इन 60 दिनों के नोटिस की अवधि में अपनी बकाया रकम को चुकाने या जवाब दे पाने में असफल रहते हैं तो लेंडर की ओर से अपनी रकम की वसूली के लिए आपकी प्रॉपर्टी की नीलामी शुरू कर दी जाती है। हां, यहां एक बात और है कि ऐसा करने से पहले उसको एक और नोटिस देना होता है, जिसमें बैंक के वैल्यूअर्स की ओर से आंकी गई संपत्ति की वैल्यू की जानकारी दी जाती है। सिर्फ यही नहीं, इसके साथ ही इसमें रिजर्व प्राइस, नीलामी की तिथि और समय सरीखी अन्य जानकारियां भी होती हैं। ऐसे में अगर प्रॉपर्टी की वैल्यू कम लगाई गई है, तो बॉरोअर अपनी ओर से आपत्ति दर्ज करा सकता है। सरल भाषा में कहें तो बॉरोअर खुद से कीमत की पेशकश् करने वाले संभावित खरीददारों की खोज कर सकता है। इसके साथ ही उन्हें लेंडर से मिलवा भी सकता है।
3 . बाकी रकम के बारे में मालूम करना
आपकी संपत्ति पर लेंडर का कब्जा होने के बाद आप बिल्कुल ये बात न सोचें कि आपकी संपत्ति आपके हाथों से पूरी तरह से निकल गई है। यहां आपको करना ये होगा कि नीलामी की प्रक्रिया पर बराबर नजर रखें। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन दिनों ऐसा करना बेहद आसान भी हो गया है। इसका कारण ये है कि ज्यादातर ई-लेंडर्स ई-ऑक्शन करते हैं। लेंडर्स के अपनी बकाया रकम वसूलने के बाद बाकी बची रकम को उनको रिफंड करना होता है। इस बात का सबसे ज्यादा ध्यान रखना होगा आपको। इस बारे में बैंकिंग एंड मैनेजमेंट कंसल्टेंट वी एन कुलकर्णी ने बताया कि बकाया रकम और नीलामी आयोजित करने के सभी खर्चों की वसूली करने के बाद बैंक को कानून के तहत बाकी बची रकम को वापस करना होता है।
4 . अधिकार है सुनवाई का
ध्यान दें कि नोटिस की अवधि के दौरान आपको पूरा अधिकार है कि आप अधिकृत अधिकारी के सामने अपनी बात को रख सकते हैं। इसके साथ ही उसको प्रॉपर्टी पर कब्जे के नोटिस को लेकर अपनी आपत्तियों की जानकारी दे सकते हैं। इसको लेकर अधिकारी को सात दिनों के अंदर इसका जवाब देना होता है। ऐसे में अगर वह आपकी आपत्ति को खारिज करता है तो उसे इसके लिए वैध कारण बताने होंगे।
5 . पूरा अधिकार है मानवीय व्यवहार का
इसके तहत आप इस बात को बिल्कुल न भूलें कि बैंकों पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का पूरा नियंत्रण है। वे अपनी बकाया रकम की वसूली के लिए साहूकारों वाला व्यवहार आपके साथ नहीं कर सकते। यहां आपको बता दें कि रिकवरी एजेंट्स के लोगों को प्रताड़ित करने की रिपोर्ट्स सामने आने के बाद रिजर्व बैंक ने कुछ साल पहले इस मुद्दे पर बैंकों को कड़ी फटकार भी लगाई थी। बैंकों की ओर से भी कस्टमर्स के लिए अपने कोड ऑफ कमिटमेंट के तहत आधारित प्रैक्टिसेस का स्वेच्छा से पालन करने का फैसला किया। इसके अलावा ये नियम है कि एजेंट्स सिर्फ बॉरोअर की पसंद वाले स्थान पर ही उनसे मिल सकते हैं।