बिजली बचाओ के नाम पर बिजली कंपनियों को अकूत अधिकार मिल गए। अब वो इन अधिकारों का खुला दुरुपयोग कर रहीं हैं। 84.84 लाख के बोगस बिलिंग का मामला सामने आया है। झंझट देखिए कि उपभोक्ता की कोई सुनवाई नहीं हुई। कंपनी ने पहले 84.84 लाख का बिल वसूला उसके बाद आपत्ति पर सुनवाई शुरू हुई। करीब 5 साल लम्बी लड़ाई के बाद विद्युत लोकपाल ने माना कि बिल गलत था अत: उपभोक्ता को 84.84 लाख लौटाए जाएं। मामला होशंगाबाद स्थित सिक्योरिटी पेपर मिल का है। इस मिल में नोटों का कागज बनाया जाता है।
मामला करीब पांच साल पुराना है। बिजली कंपनी ने मिल प्रबंधन को जुलाई से अक्टूबर 2010 की ऑडिट रिकवरी का सप्लीमेंट्री बिल करीब 84.84 लाख भेजा। कंपनी ने यह भी कहा कि यदि इस राशि का भुगतान नहीं किया गया तो बिजली कनेक्शन काट दिया जाएगा। भारी भरकम रिकवरी बिल देखकर मिल प्रबंधन तुरंत हरकत में आया। प्रबंधन ने अंडर प्रोटेस्ट के तौर पर यह राशि जमा करते हुए राजधानी के चांदबड़ स्थित विद्युत उपभोक्ता शिकायत निवारण फोरम में बिल को चुनौती दी।
फोरम ने 29 सितंबर 2014 को एसपीएम द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। फोरम के आदेश को चुनौती देते हुए एसपीएम की ओर से राज्य विद्युत नियामक आयोग में विद्युत लोकपाल एमके गुप्ता के सामने 9 अप्रैल 2015 को अपील की। जिसमें चुनौती दी गई कि यह वसूली अवैधानिक है और न्यायसंगत नहीं है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि वसूली समय सीमा के बाद की गई है, जो विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 56- 2 के तहत वसूलने योग्य नहीं है। कंपनी द्वारा की गई बिलिंग त्रुटिपूर्ण है, जिसे वापस दिलाया जाए। विद्युत लोकपाल, मप्र विद्युत नियामक आयोग ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद पिछले महीने बिजली कंपनी को आदेश दिए कि मिल प्रबंधन को यह राशि लौटाए। एसपीएम की ओर से पैरवी करने वाले वकील एसके दुबे ने बताया कि 84.84 लाख अंडर प्रोटेस्ट के तौर पर जमा कराई गई है।
एसपीएम की ओर से यह दलील दी गईं
मप्र विद्युत नियामक आयोग द्वारा वर्ष 2010-11 के लिए जारी किए गए टैरिफ ऑर्डर यानी बिजली की दरों और विद्युत प्रदाय संहिता 2004 का अवलोकन करने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि निर्धारित प्रावधानों के अनुरूप किसी स्तर बिलिंग करने में चूक हुई।
वसूली के लिए 90 दिन पहले सूचना देना चाहिए था, लेकिन कंपनी ने महज 15 दिन पहले ही नोटिस दिया, जो अवैधानिक है।