मध्यप्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित प्रतिष्ठित चौरासी महादेवों में से कुटुम्बेश्वर महादेव कुटुम्ब की रक्षा करते हैं। इसके एक बार दर्शन करने से ही व्यक्ति के गोत्र में वृद्धि हो जाती है लेकिन माना जाता है कि पहले इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही लोग मृत्यु की भेंट चढ़ जाते थे।
ऐसा कहा जाता है कि जब देवों और दैत्यों ने क्षीरसागर का मंथन किया तब उसमें से ऐसा विष निकला, जिसने चारों ओर त्राहि मचा दी क्योंकि इस विष को धारण करने का सामर्थ्य किसी भी देव-दानव आदि में नहीं था। तब उस विष को वापस समुद्र में डालने के लिए गंगा और यमुना जैसी आदि नदियों को कहा गया लेकिन जब वे भी यह कार्य नहीं कर सकीं तब देवताओं ने महादेव से स्तुति की कि वे इससे उनकी रक्षा करें। महादेव ने मोर बनकर उस विष को पी लिया, लेकिन वे भी इसे सहन नहीं कर पाए।
तब महादेव ने ब्राह्मणों से उत्पन्न शिप्रा नदी को वह विष दे दिया। शिप्रा ने इसे महाकाल वन स्थित कामेश्वर लिंग पर डाल दिया। जिससे वह लिंग विषयुक्त हो गया। इससे जो भी श्रद्धालु उस शिवलिंग के दर्शन करता वो तत्काल मृत्यु को प्राप्त हो जाता। जब इस प्रकार कई ब्राह्मण और अन्य श्रद्धालु बेवजह मारे गए तब स्वयं देवों ने भगवान शिव से एक बार फिर प्रार्थना की।
भगवान शिव ने प्रार्थना स्वीकार करते हुए सभी मृत ब्राह्मणों को न केवल जीवनदान दिया बल्कि यह वरदान भी दिया कि जो कोई व्यक्ति श्रद्धाभाव से इस शिवलिंग का पूजन-अर्चन करेगा उसका वंश कभी भी क्षय को प्राप्त नहीं होगा। साथ ही वह आरोग्य को प्राप्त होगा और कुटुम्ब में वृद्धि करेगा। इस घटना के बाद से ही ये लिंग कुटुम्बेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। जिसके दर्शन और अपने वंश की रक्षा की प्रार्थना करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।