नई दिल्ली। देश में पहली बार किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जजों पर काम का कितना दबाव है। इस अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले हैं। हाई कोर्ट के जज किसी मुकदमे की सुनवाई में औसतन करीब पांच मिनट से भी कम का वक्त देते हैं।
न्यायपालिका के कामकाज पर बेंगलुरु के गैर सरकारी संगठन 'दक्ष' ने अध्ययन किया। इस एनजीओ के अनुसार, 'देश में सबसे आराम से काम करने वाले हाई कोर्ट जज एक केस को सुनने में 15-16 मिनट का वक्त लेते हैं। वहीं, सबसे बिजी जज किसी मामले की सुनवाई में औसतन ढाई मिनट का समय दे पाते हैं।
इस तरह किसी मुकदमे का फैसला करने में जज औसतन तकरीब पांच से छह मिनट का वक्त लगाते हैं। उदाहरण के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट में एक जज के पास रोजाना औसतन 163 लिस्टेड होते हैं, जिनकी सुनवाई पांच से साढ़े पांच घंटे का वक्त दिया जाता है।
ऐसे में वहां के जज हर मुकदमे पर औसतन दो मिनट का समय ही दे पाते हैं। ठीक इसी तरह बड़ी तादाद में मुकदमों के लिस्टेड होने के कारण पटना, हैदराबाद, झारखंड और राजस्थान हाई कोर्ट के जज रोजाना हर मुकदमे पर दो से तीन मिनट का वक्त दे पाते हैं।
इलाहाबाद, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उड़ीसा हाई कोर्ट में जज औसतन 4 से 6 मिनट का समय देते हैं। अध्ययन में जनवरी 2015 से लेकर वर्तमान समय तक 21 हाईकोर्ट के 19 लाख मामलों और 95 लाख सुनवाई का विश्लेषण किया गया।