भारत के मुसलामान नेताओं
आदरणीय महोदय
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को मुसलमानों का धड़कता हुआ दिल समझा जाता है, इस सर ज़मीन से हमेशा मुसलमानों के हक की आवाज़ बुलन्द होती आई है। मेरा नाम अज़फर अली खान है, मैं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का छात्र हूँ, मैं अपने समाज और देश को विकसित, शिक्षित, खुशहाल, अपराध मुक्त, नैतिक मूल्यों से युक्त राष्ट्र के निर्माण में योगदान करना चाहता हूं।
भारत में हर धर्म, हर जाति, हर वर्ग के लोग भाईचारे, की भावना के साथ मिलजुलकर रहते हैं परंतु एक समाज ऐसा भी है जिस की पचास प्रतिशत आबादी अपनी बुनियादी जरूरतों से मोहताज है। रंगनाथ मिश्र आयोग ने तो अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों में से ज़्यादातर लोगों की हालत हिंदू दलितों से भी बदतर है और मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक हालात पर सच्चर कमेटी की भी यही राये है।
सच्चर की सिफारिशों के दस साल बाद भी मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक-शैक्षिक हालत में बदलाव नहीं आया है। सियासी गलियारों में पिछले कई सालों से धूल फांक रही रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट कहां है? उस पर चर्चा क्यों नहीं हो रही है? इस मुद्दे पर हमारे नेता क्यों खामोश हैं ?
मुस्लिम समाज केवल एक राजनीति का विषय है ?
मुस्लिम मतदाताओं को केवल राजनीतिक फायदे के लिए ही इस्तेमाल करा जाएगा ?
इस पत्र के माध्यम से मुस्लिम समाज की तरफ से अनुरोध करता हूँ के
1.मुसलमानों के आरक्षण की आवाज़ आप संसद में उठाईये ।
2. रंगनाथ मिश्र आयोग एवं सच्चर समिति की सिफारिशें लागू हों।
3.दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को एससी का दर्जा मिले।
4.अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक दर्जे की लड़ाई में अपना योगदान दें।
अंत : आप को याद दिलाना चाहता हूं के यह वो समाज है जिस की वजह से आप को हेसियत, इज्जत, आबरू, पेहचान मिली है, मौजूदा हालात बद से बत्तर होते चले जा रहे हैं और हुकूमत-ए-हिन्द की मूखालफ़त अपनी उरूज पर है, ऐसी सुरत-ए-हाल मे आप की बेमुरव्वत होना बहुत तकलीफ देता है।
यह पत्र उन सज्जनों को लिखा है जो आपने आप को मुसलमानों का नेता,मसीहा समझते हैं । साथ ना देने पर फिर हमे कोई दूसरा विकल्प या दूसरा रेहनुमा तलाशना होगा और यह समाज आप को कभी माफ़ नही कर पायेगा ।
अजफर अली खान
ए एम यू छात्र