राकेश दुबे@प्रतिदिन। पाकिस्तानी मीडिया द्वारा लाहौर घटना पर अब जो लिखा जा रहा था | उसे अमान्य करते हुए भारत का एक वर्ग मान रहा था कि पाकिस्तान सरकार की ओर से जब तक अधिकृत वक्तव्य नहीं आ जाता तब तक मीडिया की रिपोर्ट को हमें अंतिम नहीं मानना चाहिए लेकिन जब पाकिस्तान की ओर से भारत स्थित उसके उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने कह दिया है कि भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी या एनआईए पाकिस्तान नहीं जाएगी तो फिर यह स्वीकारने में कोई समस्या कैसे हो सकती है कि पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट सही थी? जो दलील अब्दुल बासित ने दी वह बड़ी विचित्र है|
बासित ने कहा कि ये लेन-देन की नहीं बल्कि समन्वय की बात है| सवाल है कि इसमें लेन-देन कहां से गया? और समन्वय किसको कहते हैं? क्या यह समन्वय है कि जो कुछ आपस की सहमति से तय हुआ था उससे हम मुकर जाएं| भारत ने साफ कहा है कि दोनों देश एक दूसरे की मदद करेंगे इसी तरह सहमति बनी थी और इसके अनुसार यह तय था कि जेआईटी की वापसी के बाद एनआईए वहां जाएगी. अगर आपने इसे खारिज कर दिया तो फिर इसमें समन्वय भी कहां हुआ? अगर एनआईए वहां नहीं जाती तो यह केवल एक घटना भर नहीं होगी, यह पठानकोट हमलावरों के सूत्रधारों को पकड़ने और सजा दिलाने के अपने वचन से पीछे हटने तक सीमित भी नहीं होगा, बल्कि भारत के साथ संबंध सामान्य करने की पूरी प्रक्रिया को तत्काल पीछे धकेल देना होगा|अब्दुल बासित ने अपने बयान में यह भी कह दिया कि दोनों देशों के बीच कोई बैठक प्रस्तावित नहीं है और मेरे ख्याल से फिलहाल शांति प्रक्रिया निलंबित है|
आने वाले समय में विदेश सचिव की बातचीत की कोई योजना नहीं है. क्यों? तो उनका उत्तर यह है कि लगता है भारत शांति प्रक्रिया को आगे ले जाने को तैयार नहीं है| उनके अनुसार भारत ने पठानकोट हमले की जांच के लिए आई जेआईटी की टीम के साथ सहयोग नहीं किया| बासित अपने आप तो ये सब बोल नहीं रहे हैं|बासित का अर्थ है कि पाकिस्तान की सत्ता प्रतिष्ठान से उनको ऐसा कहने को हरी झंडी दी गई है. कौन भारतीय होगा जिसके अंदर अब्दुल बासित के इन बयानों से खीझ पैदा नहीं होगी? यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात हो गई |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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