मध्यप्रदेश के 84 महादेवों में एक क्षिप्रा नदी पर स्थित ढुंढेश्वर महादेव मंदिर की खास महत्व है। माना जाता है कि यहां दर्शन करने से व्यक्ति को जीवन में सफलता हासिल होती है। इस विश्वास के पीछे एक कथा भी प्रचलित है जो स्थानीय लोगों के बीच सदियों से सुनाई जा रही है।
मान्यताओं के अनुसार कैलाश पर्वत पर ढुंढ नामक गणनायक था जो कामी और दुराचारी था। एक बार वो इन्द्रलोक की अप्सरा रम्भा को नृत्य करता देख उस पर आसक्त हो गया और उसने रम्भा पर एक फूलों का गुच्छा फेंक दिया। ये देखकर इंद्र क्रोधित हुए और उन्होंने उसे शाप दे दिया, जिससे ढुंढ बेहोश होकर सीधे मृत्युलोक में जाकर गिर गया।
जब उसे होश आया तब उसे अपने कृत्य पर अफसोस हुआ और शाप से मुक्ति पाने के लिए उसने महेंद्र पर्वत पर तपस्या की लेकिन उसे सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। शाप से मुक्ति के लिए वो की स्थानों पर तपस्या करता हुआ गंगा तट पर पहुंचा, लेकिन वहां भी उसे सिद्धि नहीं मिली। जिससे हताश होकर उसने धर्म कर्म छोड़ने का निर्णय लिया।
उसी समय भविष्यवाणी हुई कि महाकाल वन जाओ और क्षिप्रा तट पर पिशाच मुक्तेश्वर के पास स्थित शिवलिंग की पूजा करो। इससे तुम शाप से मुक्त हो जाओगे और तुम्हे और तुम्हें वापस गण पद प्राप्त होगा। भविष्यवाणी सुनकर ढुंढ ने महाकाल वन में आकर पूरे समर्पण के साथ उस लिंग की पूजा-अर्चना की जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा ढुंढ ने कहा कि इस लिंग के पूजन से मनुष्यों के पाप दूर हों और यह लिंग मेरे नाम पर प्रसिद्ध हो। जिसके बाद से ही ये शिवलिंग 'ढुंढेश्वर महादेव' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। ऐसी मान्यता है कि निष्ठा और समर्पण भाव से यहां दर्शन करने पर व्यक्ति को पापों से मुक्त मिलती है और पद एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।