उज्जैन। भारत सरकार की महारत्न कंपनी कोल इंडिया के निदेशक रहे कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वतीजी अब महातांत्रिक हैं। कापालिक बाबा के वैभव से वैराग्य चुनने की कहानी हतप्रभ करने वाली है। वे एक मात्र ग्लोबल पीस अवार्ड प्राप्त तांत्रिक हैं, जिनका सम्मान राष्ट्रपति भी कर चुके हैं।
हैदराबाद की डॉक्टर भुवनेश्वरी उनकी ऑटोबायोग्राफी लिख रही हैं। पंजाब के रट्टेवाल जिले में जन्मे महाकाल भैरवानंद सरस्वती महाकुंभ सिंहस्थ में साधना करने आए हैं। उन्होंने शिप्रा नदी पर कालभैरव पुल के पास अपनी कुटियां बनाई है। कुटिया में अपने साथ दिवंगत राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के के. सुदर्शन की कुछ तस्वीरों को सहेजे भैरवानंद सरस्वती ने बताया मध्यप्रदेश की सागर यूनिवर्सिटी से एमएसडब्ल्यू और इंदौर की देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से एलएलएम किया था।
इंजीनियर पिता के कहने पर शादी की, चार बच्चे भी हुए। उनमें से एक डॉक्टर है और दूसरा प्रशासनिक अफसर। जब कोल इंडिया लिमिटेड में निदेशक था, तब रात 12 बजे ग्रहस्थ आश्रम छोड़कर वैराग्य अपनाया। करीब 55 साल से श्मशान में कठोर साधना कर रहा हूं। इस दरमियान राष्ट्रपति सम्मान मिला और इंडियनयूरोपियन फ्रेंडशिप सोसायटी की ओर ग्लोबल पीस अवॉर्ड भी मिला।
तीन बार कोमा से निकले बाहर
डॉ. भुवनेश्वरी बताती हैं कि कापालिक बाबा तीन बार कोमा से बाहर निकल चुके हैं। उन्होंने 18 क्विंटल जलती लकड़ियों के बीच 13 घंटे लगातार साधना की है। किडनी खराब होने के बावजूद जनकल्याण के लिए तंत्र साधना करने उज्जैन आए हैं। वे शक्तिपीठ कामाख्या मंदिर के साधक हैं।