राकेश दुबे@प्रतिदिन। भयानक सूखे को देखते हुए महाराष्ट्र में आईपीएल मैच आयोजित करने पर जो सख्त रवैया मुम्बई हाईकोर्ट ने अपनाया है, वह जरूरी था। सच में सुविधा-संपन्न वर्ग को यह याद दिलाने की जरूरत है कि जिस देश-प्रदेश में वे रहते हैं, उसी देश-प्रदेश में वे लोग भी रहते हैं, जो पानी की भयानक कमी से जूझ रहे हैं। वास्तव में एक ऐसा नजरिया विकसित हो रहा है, जिसमें हम अपने आस-पास की तमाम चीजों को अलग-अलग खानों में बांटकर देखने लगे हैं, और भले ही हम देशभक्ति का कितना भी दम भरें, लेकिन समाज के सुविधाहीन और परेशान वर्गों के साथ कभी भी खड़े होने की कोशिश नहीं होती । मुम्बई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र में आईपीएल आयोजित करने पर जैसी तीखी टिप्पणी की है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
इस सिलसिले में जो याचिका दायर की गई थी, उसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र के तीन स्टेडियमों में आईपीएल के दौरान करीब 60 लाख लीटर पानी का इस्तेमाल होगा। यह तर्क दिया जा सकता है कि जहां मैच आयोजित हो रहे हैं, वहां सूखे के हालात नहीं हैं, इसलिए वहां पानी के इस इस्तेमाल में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन मुंबई और पुणे से मराठवाड़ा की दूरी ज्यादा नहीं है। हम तकनीक के जिस युग में जी रहे हैं, उसमें यह अतिरिक्त पानी मराठवाड़ा या विदर्भ के सूखा पीडि़त इलाकों में पहुंचाना कठिन भले ही हो, पर असंभव कतई नहीं है। मुख्य मुद्दा सरकार, बीसीसीआई, मुंबई और महाराष्ट्र के क्रिकेट संगठनों के सरोकार का है। अगर राज्य में कहीं भी ऐसा सूखा हो, तो सरकार और समाज की प्राथमिकता सूखा पीडि़तों को राहत पहुंचाना होनी चाहिए, मगर देखा यह जा रहा है कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री से लेकर तमाम राजनेता व्यर्थ के विवादों में अपनी शक्ति खर्च कर रहे हैं।
जिस वक्त किसानों के लिए अपने परिवार और मवेशियों के लिए पानी और खाना जुटाने के लाले पड़े हैं, वहां कभी काम को लेकर, तो कभी नारों को लेकर और कभी सत्तारूढ़ गठबंधन की दोनों पार्टियों के नेताओं के अहंकार को लेकर विवाद खड़े हो रहे हैं। इसी तरह, मुंबई क्रिकेट संघ या महाराष्ट्र क्रिकेट संघ का रवैया यह है कि उनका क्रिकेट और उससे आने वाले पैसे के अलावा समाज की किसी समस्या से कोई लेना-देना नहीं है। इन क्रिकेट संघों की अपनी दुनिया अलग है और सूखा पीडि़त किसानों की दुनिया इससे बहुत अलग, भले ही इन दोनों के बीच भौतिक दूरी बहुत कम है। ऐसा नहीं है कि महाराष्ट्र में ऐसे लोगों की कमी है, जो सूखा पीडि़तों की मदद के लिए जूझ रहे हैं। लेकिन जो लोग इससे बेपरवाह हैं, वे भी अगर जुट जाएं, तो सूखा राहत कई गुना बढ़ सकती है, क्योंकि ये लोग या संगठन बहुत प्रभावशाली हैं और उनकी जिम्मेदारी बनती है।
भारत के नौ राज्यों में सूखे की स्थितियां हैं। दो साल लगातार अनियमित बारिश की वजह से सूखा ज्यादा भयावह हो गया है और कई इलाके ऐसे हैं, जिनमें पिछले तीन साल से सूखा पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में केंद्र सरकार से भी जवाब-तलब किया है। सूखे की स्थिति अचानक पैदा नहीं हुई है। इसके पीछे बरसों की लापरवाही है, लेकिन फौरी राहत को लेकर जो लापरवाही अभी दिख रही है, उसमें और इस बरसों की लापरवाही में गहरा संबंध है। यह समाज के ग्रामीण व सुविधाहीन तबके और हमारे प्राकृतिक संसाधनों के प्रति समाज के अभिजात वर्ग की संवेदनहीनता है, जिस पर न्यायपालिका ने एक संकट के समय सवाल उठाया है। शायद यह सवाल हम सबकी संवेदना को झकझोर सके।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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