
भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल एक लाख से अधिक लोग मरते हैं। यह आंकड़ा दुनिया में सबसे बड़ा है। दुर्घटनाओं की सबसे बड़ी वजह चालकों की लापरवाही तो है ही, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक, सड़कों के डिजाइन और निर्माण की कमियां भी इसकी एक बड़ी वजह है। हमारे यहां सड़क बनाते वक्त यह मान लिया जाता है कि जो भी व्यक्ति इस सड़क पर वाहन चलाएगा, वह बहुत कुशल वाहन चालक होगा और हर वक्त पूरे ध्यान के साथ वाहन चलाएगा और कभी लापरवाही नहीं बरतेगा। वास्तविकता यह है कि ऐसा आदर्श वाहन चालक हो सकना नामुमकिन है। इसलिए वैज्ञानिक नजरिये से सड़क डिजाइन करते हुए यह ख्याल रखा जाना जरूरी है कि अगर कभी किसी चालक से लापरवाही हो गई, तो यथासंभव उससे नुकसान न हो। हमारे यहां स्पीड ब्रेकर बनाते हुए भी अक्सर यह नहीं सोचा जाता कि अगर कोई वाहन चालक स्पीड ब्रेकर नहीं देख पाया, तो उससे गंभीर नुकसान न हो। कई जगह स्पीड ब्रेकर पर पीली पट्टियां नहीं होतीं और बहुत-सी जगहों पर स्पीड़ ब्रेकर होने की सूचना नहीं पाई जाती। स्पीड ब्रेकर अक्सर बना तो दिए जाते हैं, पर उनका नियमित रख-रखाव नहीं किया जाता, जिससे भी वे खतरनाक हो जाते हैं।
सड़क-परिवहन मंत्रालय की मंशा अच्छी है, मगर यह देखना होगा कि उसके आदेश पर अमल कितना होता है। इसकी वजह यह है कि स्पीड ब्रेकर बनाने वाली नगरपालिकाएं या ग्राम पंचायतें होती हैं और उनसे इस आदेश का पालन करवाना बहुत मुश्किल है। इन संस्थाओं द्वारा स्पीड ब्रेकर बनाने का उद्देश्य यही रहता है कि गांवों या शहरों में भीड़ भरे इलाकों में यातायात की गति धीमी हो जाए, ताकि दुर्घटनाओं का खतरा न रहे या लोग सड़क पार कर सकें। देश में वाहनों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सड़कों के डिजाइन बनाए जाएं और निर्माण को ज्यादा वैज्ञानिक व आधुनिक बनाया जाए, ताकि किसी को सड़क पर खतरे का सामना न करना पड़े और न ही जरा-सी लापरवाही की भारी कीमत चुकानी पड़े।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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