भोपाल। भारत में स्थाई शौचालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के तहत 12000 रुपये में बनाए जाते हैं, परंतु सिंहस्थ में शिवराज सरकार ने उससे कहीं ज्यादा घटिया शौचालय 20000 रुपए महीना की दर पर किराए पर लिए। मेला खत्म होते ही ठेकेदार सारे शौचालय उठा ले गया। सरकार के पास कबाड़ तक नहीं बचा।
ठेकेदार ने इन शौचालयों में जो सामग्री लागई थी वह सामग्री जैसे टीन, दरवाजे, चौखट वह वापस ले गया। यानी ठेकेदार को सिर्फ एक महीने के लिए ही इस सामान को अस्थायी तौर पर लगाया और अब वह सामग्री को फिर से इस्तेमाल कर सकता है। इस तरह से ठेकेदार को दोहरा फायदा हुआ है। जबकि निर्माण का अर्थ होता है, सामग्री का मालिकाना हक सरकार का हो जाना। सरकार इस सामग्री को कबाड़ में भी बेचती तो 1000 रुपए प्रति शौचालय वापस मिल जाता। मजेदार तो यह है कि सरकार ने इस घोटाले की जमावट टेंडर की शर्तों में ही कर ली थी। नाम था शौचालयों का निर्माण जबकि कांट्रेक्ट में लिखा था कि सिंहस्थ खत्म होने के बाद ठेकेदार निर्माण हटा कर जगह को पहले की तरह समतल करेंगे। यानि सरकार ने शौचालय किराए पर लिए थे।
एक शिकायत यह भी है कि एक ही क्षेत्र में सारे शौचालय बना दिए गए और सैप्टिक टैंक की जगह प्लास्टिक की टंकियों का इस्तेमाल किया गया। यह टंकियां जल्द ही भर गई और गंदगी चारों ओर फैलने लगी थी जिसकी सफाई के लिए कोई इंतजाम नहीं थे।
हालांकि यह घोटाला दूसरे के मायने में शायद इसलिए भी अलग होगा कि मेला प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह ने खुद शौचालयों की परेशानियों के बारे में बताया था और टेंडर देने की शर्तों में हुई गलती को स्वीकार किया था। उन्होंने खुद इस मामले का संज्ञान लेते हुए जांच की बात की है। समय पर न बनने वाले शौचालय, घटिया निर्माण और खराब गुणवत्ता वाले सामान को लगाने की कई शिकायतें पहुचीं हैं। यह तो तय है कि इन मामलों को देख रहे अफसरों पर जल्द ही कारवाई की जाएगी।