भोपाल। मप्र के तमाम सरकारी विभागों में करीब 24 लाख मजदूर काम करते हैं। इनमें से मात्र 3 लाख मजदूरों का ही रजिस्ट्रेशन है। 21 लाख मजदूरों को ना तो सामाजिक सुरक्षा का लाभ दिया जाता है और ना ही पीएफ का फायदा। यह पड़ताल हमारी नहीं, बल्कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की है। जिसमें यह स्पष्ट हुआ है कि मप्र के सरकारी विभागों में 24 लाख मजदूरों का शोषण हो रहा है।
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, भोपाल विकास प्राधिकरण, आरआरडीए, प्रदेश के सभी 16 नगर निगम, सीपीए, एनएचएआई, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, रेलवे, हाउसिंग बोर्ड, जल संसाधन एवं पीडब्ल्यूडी सहित अन्य शासकीय विभागों के ठेकेदारों की सूची ईपीएफ ने तलब कर ली है। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि सरकारी विभागों में भी नियमों का पालन नहीं हो रहा। मजदूरों से काम लेने वाले ठेकेदारों की रुचि उनके पीएफ पंजीयन कराने में नहीं है।
विभाग को छानबीन के दौरान ऐसे उदाहरण भी मिले जिनसे साबित हुआ कि ठेकेदारों ने मजदूरों का पैसा ही दबा लिया। कतिपय मामलों में यह भी पाया गया कि नगर निगम और हाउसिंग बोर्ड ने अपनी ओर से प्रमुख नियोक्ता की भूमिका भी ठीक से नहीं निभाई। ईपीएफ द्वारा नगर निगम एवं हाउसिंग बोर्ड को नोटिस भी भेजे गए हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकार के विभिन्न महकमों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से अवगत कराया गया है जिसमें कहा गया है कि निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा एवं श्रम कानूनों का पालन कराया जाए।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले निर्देश जारी किए थे। भोपाल के रीजनल पीएफ कमिश्नर अश्विनी कुमार गुप्ता का कहना है कि इस संबंध में उन्होंने प्रदेश के कई शासकीय विभागों को पत्र भेजे हैं। कुछ महकमों को नोटिस भी जारी किए गए।