भोपाल। सिंहस्थ को शिवराज सरकार ने अपनी ब्रांडिंग का जरिया बना लिया था। नेताओं के फोटो वाले विज्ञापनों पर करोड़ों लुटाए गए। सिंहस्थ मेला क्षेत्र में भी जमकर खर्च किया गया। भ्रष्टाचार का बोलबाला है अत: ऐसी जुगत लगाई गई कि भले ही सरकारी खजाने को चपत लग जाए लेकिन सिग्नेचर करने के बदले मोटा माल मिलना चाहिए, सो सबकुछ महंगा हो गया। शिवराज का सिर्फ एक ही लक्ष्य था, सिंहस्थ के बहाने देशभर में अपनी ब्रांडिंग कर लेना। वो इसी दिशा में जुटे रहे।
देखते ही देखते सरकारी खजाना लगभग खाली हो गया है। प्रशासनिक हलकों में खबर हैं कि सिंहस्थ के कारण मध्यप्रदेश सरकार की वित्तीय स्थिति फिर गड़बड़ा गई हैं। अगले माह सरकारी कर्मचारी अधिकारियों को वेतन बाँटने में लाले पड़ सकते हैं।
इन दिनों मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों में घोषित-अघोषित विद्युत कटौती जमकर की जा रही हैं। बिजली की कमी नहीं है लेकिन सरकार के पास पैसा नहीं है जो वो प्राइवेट कंपनियों से खरीदकर बिजली सप्लाई कर सके, सो अघोषित कटौती की जा रही है, ताकि खर्चा कम हो।
13 साल पहले बिजली पानी-सड़क को लेकर कांग्रेस की दिग्विजय सरकार चली गई थी। शिवराज ने मुख्यमंत्री बनते ही देश के निजी उद्योगों से महँगी दर पर बिजली खरीदने का कार्य शुरू कर दिया। अफसरों ने बिजली खरीदी में जमकर भ्रष्टाचार किया।
सिंहस्थ को बिजली देने के लिए भी सरकार ने जमकर अघोषित कटौती की। सिंहस्थ की शुरूआत के पूर्व सरकार ने “ग्रीन सिंहस्थ” कंसेप्ट के नाम पर करोड़ों रूपए फूँक डाले थे। शुरू होते होते साधु संतों के भव्य पंडालों में शीतलता बनाए रखने एयर कंडीश्नर लगा दिए गए। आँकड़ों के अनुसार उज्जैन मेला क्षेत्र सहित अन्य जगह पर लगभग डेढ़ लाख ए.सी. 24 घंटे चलायमान तौर पर लगे हुए हैं। जो बिजली तो खर्च कर ही रहे हैं तापमान में भी वृद्धि कर रहे हैं।