न्यायिक कसौटी पर क्यों असफल होता है आरक्षण

राकेश दुबे@प्रतिदिन। हरियाणा राज्य सरकार को भी शायद यह मालूम रहा होगा कि कानूनी जांच में उसका आरक्षण विधेयक खरा नहीं उतर पाएगा। उसने सिर्फ जाटों की भावनाओं को शांत करने के लिए यह विधेयक विधानसभा में पेश किया और वह सर्वसम्मति से पास भी हो गया। हरियाणा सरकार का जाट आरक्षण अदालत के न्यायिक अवरोध पर अटक गया है । जाटों और अन्य पांच जातियों को हरियाणा सरकार द्वारा दिए गए आरक्षण पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी।

कोई भी पार्टी हरियाणा में जाट आरक्षण के खिलाफ नहीं दिखना चाहती। यह आरक्षण देने के लिए हरियाणा सरकार ने जस्टिस के सी गुप्ता समिति की जिस रिपोर्ट को आधार बनाया था, उसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। इस मायने में आरक्षण देने वाला विधेयक न्यायपालिका के फैसले को बदलने की कार्रवाई है। नियमानुसार न्यायपालिका के फैसले पर पुनर्विचार खुद न्यायपालिका कर सकती है, इसलिए यह विधेयक संविधान के अनुरूप नहीं है। जब यह विधेयक आया था, तब भी जानकारों ने यह मुद्दा उठाया था और हाईकोर्ट में भी यह मुद्दा उठा।2014 में भी जाटों को पिछड़ी जाति के रूप में आरक्षण देने के लिए हरियाणा विधानसभा ने विधेयक पास किया था। संसद से भी जाटों को आरक्षण देने के लिए कानून बना, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि जाट आर्थिक, शैक्षणिक या राजनीतिक, किसी भी स्तर पर पिछडे़ नहीं हैं।

यह अब साफ है कि जाट, मराठा या गुजरात के पटेल जैसी जातियों को पिछड़ी जाति की तरह आरक्षण देना तकरीबन नामुमकिन है, क्योंकि हर बार ऐसी कोशिश अदालत में खारिज हो जाएगी। किसी जाति को पिछड़ा साबित करने के जो मानदंड हैं, उन पर ये जातियां खरी नहीं उतरतीं। पिछड़ा जाति आयोग भी जाटों को पिछड़ा मानने से इनकार कर चुका है। इसलिए राजनीतिक पार्टियों को इस उलझन से निकलने का कोई समझदारी भरा हल निकालना चाहिए। अब तक सभी पार्टियां वोटों की खातिर इस समस्या को बढ़ावा देती रही हैं, लेकिन अब यह समस्या गंभीर हो गई है और इसके राजनीतिक फायदे भी खत्म हो गए हैं।

यह बात इन समुदायों के लोगों को समझाई जानी चाहिए कि ग्रामीण स्तर पर वैकल्पिक रोजगार पैदा होना ही उनकी समस्या का हल है। साथ ही राज्य सरकार और समुदायों के नेताओं को ऐसी स्थितियां नहीं पैदा होने देनी चाहिए, जैसी आरक्षण आंदोलन के दौरान हो गई थीं। यह भी समझा जाना चाहिए कि भारत की जो विशाल युवा आबादी है, उसके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर नाकाफी हैं। आरक्षण की मांग तो इस व्यापक समस्या का एक लक्षण है। अगर इस युवा आबादी को अवसर मिले, तो यह देश को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती है, वरना आरक्षण जैसे आंदोलनों में यह अपनी और देश की ऊर्जा नष्ट ही करेगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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