
न्यायमूर्ति सुजय पॉल की एकलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता बड़ा मलहरा छतरपुर निवासी मुन्नीबाई कोल का पक्ष अधिवक्ता प्रमोद सिंह तोमर ने रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता एएनएम बतौर सेवारत थी। इसी दौरान उसकी बहू ने आत्महत्या कर ली। लिहाजा, याचिकाकर्ता सहित अन्य परिजनों के खिलाफ धारा- 498 ए व 304 बी के तहत अपराध पंजीबद्घ कर लिया गया। अदालत से 30 मार्च 2009 को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने पर जेल हो गई। इसी केस की वजह से याचिकाकर्ता को 1 मार्च 2008 को निलंबित कर दिया गया।
जिसके बाद कुछ दिन जीवन निर्वाह भत्ता दिया गया, जो आगे चलकर बंद कर दिया गया। याचिकाकर्ता जमानत अर्जी मंजूर होने के बाद जेल से बाहर आई। उसने हाईकोर्ट में सजा के खिलाफ अपील दायर कर दी है। उसकी उम्र 63 साल है, उसे जीवन-यापन के लिए शासकीय सेवा के एवज में पेंशन सहित अन्य लाभ अपेक्षित हैं। चूंकि विभाग आवेदन पर गौर नहीं कर रहा, अतः न्यायहित में हाईकोर्ट आना पड़ा।
बहस के दौरान कहा गया कि याचिकाकर्ता को निलंबन अवधि में ही सेवानिवृत्त किया गया था। इससे साफ है कि वह बर्खास्त नहीं की गई। जब बर्खास्त नहीं हुई तो पेंशन सहित अन्य लाभ मिलने में कोई परेशानी नहीं है।