कपड़ा मिल में मजदूरी करने आए थे सीएम बन गए

भोपाल। मप्र के वर्तमान गृहमंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर मूलत: उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं। राजनीति से उनका या उनके परिवार का कोई रिश्ता नहीं रहा। वो तो कपड़ा मिल में मजदूरी करने के लिए भोपाल आए थे, फिर यहीं बस गए और एक वक्त वो भी आया जब वो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। 

बाबूलाल गौर बताते हैं, 'हमने अपना सार्वजनिक जीवन लाल झंडे वाली वामपंथी पार्टी के साथ शुरू किया था। भोपाल की कपड़ा मिल में मजदूरी करते थे। 1 रुपए रोज मजदूरी मिलती थी। लाल झंडे वाला मजदूर संगठन अकसर मिल में हड़ताल कर देता था, जिससे रोजाना के हिसाब से तनख्वाह कट जाती थी। कुछ समय तक ऐसा चला। देखा तो हर महीने 10 से 15 रुपए तनख्वाह हड़ताल के कारण ही कट जाती थी, इससे मजदूरों को काफी नुकसान होता था। 

हमने लाल झंडा छोड़कर कांग्रेस का संगठन इंटक ज्वाइन कर लिया, लेकिन वहां भी मजदूर हित में काम नहीं होते देखा तो संघ का भारतीय मजदूर संघ ज्वाइन किया। यहां से आरएसएस और जनसंघ में जाने का मौका मिला और इस तरह सार्वजनिक जीवन में आ गए।'

जेपी ने दिया आशीर्वाद
1971 में जनसंघ ने पहली बार भोपाल से मुझे विधानसभा का टिकट दिया। मैं करीब 16 हजार वोटों से चुनाव हार गया। इसके बाद जेपी का आंदोलन देशभर में शुरू हुआ, हमने भी भोपाल में कई आंदोलन किए। फिर विधानसभा चुनाव आए तो जेपी ने जनसंघ से कहा कि यदि बाबूलाल गौर को निर्दलीय खड़ा किया जाएगा तो वे उनका सपोर्ट करेंगे। उस समय जनसंघ के संगठन महामंत्री कुशाभाऊ ठाकरे थे। उन्होंने इसकी अनुमति दी। मैंने चुनाव लड़ा और जीत गया। कुछ समय बाद जेपी भोपाल आए तो मैंने उनके सर्वोदय संगठन को 1500 रुपए का चंदा दिया। उन्होंने मुझे जीवन भर जनप्रतिनिधि बने रहने का आशीर्वाद दिया। उसके बाद से मैं आज तक दस बार विधायक बन चुका हूं।

संघ के कहने पर छोड़ा शराब का कारोबार
गौर बताते हैं कि अंग्रेजों के शासन के दौरान यूपी में हमारे गांव में दंगल हुआ। दंगल में पिताजी जीते तो उन्हें शराब कंपनी ने भोपाल में नौकरी दी। उस समय मैं 8 साल का था। इसके बाद उन्हें कंपनी ने एक दुकान दे दी, जिससे रोज 35 रुपए की आमदनी होती थी लेकिन, जब मैंने कपड़ा मिल ज्वाइन करने से पहले संघ की शाखा में जाना शुरू किया तो मुझसे कहा गया कि शराब बेचना छोड़ दो, संघ के कहने पर मैंने दुकान बंद कर दी। वापस अपने गांव यूपी चला गया, लेकिन वहां खेती भी नहीं कर पाया तो वापस भोपाल आ गया अौर कपड़ा मिल में मजदूरी की।

2004 में बने थे मुख्यमंत्री
बाबूलाल गौर पिछले 10 बार से लगातार विधायक के तौर पर चुने जा रहे हैं। 1991 में सुंदरलाल पटवा सरकार में उन्हें अतिक्रमण तोड़ने के लिए काफी लाेकप्रियता मिली और उन्हें बुल्डोजर मंत्री कहा जाने लगा। 2004 में उमा भारती के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उन्हें सबसे वरिष्ठ सदस्य होने के नाते मुख्यमंत्री बनाया गया। करीब 11 महीने वे सीएम रहे, इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने उनकी जगह ले ली। गौर अकसर अपने बयानों के कारण विवादों में रहते हैं।

कैसे बने बाबूराम यादव से बाबूलाल गौर?
बाबूलाल गौर बताते हैं कि उनका नाम बाबूराम यादव था। स्कूल जाते थे तो वहां तीन बाबूराम यादव थे। एक दिन टीचर ने कहा कि जो मेरी बात को गौर से सुनेगा और जवाब देगा तो उसका नाम बाबूराम गौर कर देंगे। मैंने जवाब दिया और यादव की जगह मेरा नाम गौर हो गया। भोपाल आया तो लाेगों ने बाबूराम की जगह बाबूलाल गौर कहना शुरू कर दिया अौर इस तरह मेरा नाम बाबूराम यादव से बाबूलाल गौर हो गया। बाबूलाल गौर यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह के रिश्तेदार भी हैं।

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