नई दिल्ली। भाजपा असम में पहली बार सरकार बनाने जा रही है। इसके साथ ही पार्टी के लिए उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए दरवाजा खुल गया है। इस जीत के लिए जहां पीएम मोदी के मैजिक को श्रेय दिया जा रहा है वहीं पार्टी की रणनीति को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। मोदी के विश्वासपात्र सोनोवाल पर पार्टी ने बड़ा सोच-समझ कर दांव खेला। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के विश्वासपात्र सोनोवाल को भाजपा ने चुनाव से पांच महीने पहले ही दोबारा असम का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था और जनवरी में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया।
यह हैं सर्बानंद सोनोवाल
सर्बानंद सोनोवाल कछारी समुदाय (अनुसूचित जनजाति) से आते हैं। वह बेदाग छवि के नेता हैं। असम में उनकी लोकप्रियता भी खूब है। वह 52 साल के हैं। उन्होंने अभी शादी नहीं की है और इस बारे में अभी फैसला लेना बाकी है।
31 अक्टूबर 1962 को डिब्रूगढ़ जिले के दिंजन में पैदा हुए सर्बानंद सोनोवाल ने गुवाहाटी और डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1992 में की थी। सर्बानंद 1992-1999 तक ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष रहे जिसके बाद उन्होंने असम गण परिषद के टिकट पर 2001 में पहली बार विधायक का चुनाव लड़कर जीत हासिल की। केंद्र सरकार में खेल मंत्रालय संभाल रहे सोनोवाल निजी तौर पर फुटबॉल और बैडमिंटन के खिलाड़ी भी रहे हैं। 2004 में पहली बार पूर्व केंद्रीय मंत्री पबन सिंह घाटोवर को हराकर वो लोकसभा में पहुंचे थे।
काम आया भाजपा का दांव
केंद्रीय मंत्री बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल का कद काफी बड़ा हो चुका था और पार्टी भी उनसे एक चमत्कार की उम्मीद कर रही थी। आखिर भाजपा का ये दांव काम आ गया और भाजपा की जीत हुई। सोनोवाल को जो टारगेट दिया गया था, उसके मुताबिक उन्हें असम में भाजपा का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव से कम नहीं होने देना था। सोनोवाल ने इससे कहीं ज्यादा हासिल किया।
अन्य चुनावों के इतर इस बार भाजपा ने असम में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार चुनाव से पहले ही घोषित कर दिया था। यह नाम था केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल का। सर्बानंद को सीएम पद का उम्मीदवार बनाते हुए पार्टी ने उनसे बड़ी उम्मीद की थी जिस पर वो खरे उतरे हैं। मतदान के बाद एग्जिट पोल में भाजपा की सरकार बनती दिख रही थी और नतीजों में भी यह आंकड़े सही साबित हुए।