भोपाल। टीकमगढ़ कलेक्टर ने हाईकोर्ट से नियुक्ति का आदेश लेकर आए एक गुरूजी को संविदा शिक्षक की नियुक्ति नहीं दी। मजबूरन अभ्यर्थी वापस हाईकोर्ट में चला गया। न्यायालय ने अब कलेक्टर को 90 दिन की मोहलत दी है। यदि इस बाद भी आदेश का पालन नहीं किया तो अवमानना का मामला चलेगा।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की समर वेकेशन बेंच न्यायमूर्ति वंदना कासरेकर की ग्रीष्म अवकाशकालीन एकलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता टीकमगढ़ निवासी छोटेलाल अहिरवार का पक्ष अधिवक्ता श्रीमती सुधा गौतम ने रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता औपचारिकेत्तर शिक्षा केन्द्र में 1993 से 1997 तक निरंतर कार्यरत रहा। इसी बीच औपचारिकेत्तर केन्द्र बंद होने के कारण सेवा स्वमेव समाप्त हो गई। 2008 में याचिककार्ता ने गुरुजी पात्रता परीक्षा दी, जिसमें सफल रहा। नियमानुसार संविदा शाला शिक्षक वर्गत-3 बनाया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। लिहाजा, हाईकोर्ट की शरण ले ली गई।
30 दिन में नहीं मिली राहत
न्यायमूर्ति सुजय पॉल की एकलपीठ ने पुरानी याचिका का इस निर्देश के साथ निपटारा किया था कि 30 दिन के भीतर अभ्यावेदन पर विचार कर मांग पूरी करें। इसके बावजूद ऐसा नहीं किया गया। कलेक्टर ने इस तर्क के साथ अभ्यावेदन खारिज कर दिया कि राज्य शासन के 5 अक्टूबर 2009 के परिपत्र के मुताबिक 1999 से 2000 तक निरंतर एक साल सेवा करने वाले गुरुजी पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण ही संविदा शाला शिक्षक बनाए जा सकते हैं। लिहाजा, दोबारा हाईकोर्ट की शरण ली गई।
निरस्त हो चुका है परिपत्र
बहस के दौरान बताया गया कि हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आलोक आराधे की एकलपीठ ने पूर्व में अनिल भट्ट के मामले में 5 अक्टूबर 2009 के परिपत्र को विधिसम्मत न पाकर निरस्त कर दिया था। लिहाजा, उसके प्रकाश में याचिकाकर्ता को लाभ मिलना चाहिए। हाईकोर्ट ने इस जानकारी को रिकॉर्ड पर लेकर राहतकारी आदेश सुना दिया।