भोपाल। हाईकोर्ट द्वारा प्रमोशन में आरक्षण अवैध घोषित किए जाने के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट जा रही है परंतु वहां तो पहले ही प्रमोशन में आरक्षण को अवैध ठहराया जा चुका है। 2008 में एम नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर मप्र में भी दिखाई दिया था कई विभागों ने डीपीसी पर रोक लगा दी थी। साथ ही विधि विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग से सलाह मांगी थी कि ऐसी परिस्थिति में पदोन्न्ति में आरक्षण देना जायज है या नहीं, लेकिन इस मामले में तत्समय मप्र सरकार ने कोई फैसला नहीं किया।
तत्कालीन प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया ने सिंचाई विभाग में पदोन्न्ति पर रोक लगा दी थी, पर जीएडी व अन्य विभागों ने इसे दूसरे राज्यों का बताकर रोक हटवा दी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर प्रमुख सचिव सिंचाई विभाग जुलानिया ने 2012 में मप्र लोक सेवा (पदोन्न्ति) अधिनियम 2002 के तहत पदोन्न्ति पर रोक लगा दी थी। सूत्र बताते हैं कि इस समय सरकार ने सिंचाई विभाग के अफसर के इस कदम को गलत ठहराते हुए रोक हटा दी थी।
पीएस जीएडी ने अंधेरे में रखा
सूत्र बताते हैं कि सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव के आदेश का पालन न हो। इसलिए सामान्य प्रशासन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव ने सरकार को अंधेरे में रखा था। तब एम नागराज मामले में आए फैसले की अपनी तरह से व्याख्या की गई थी। सरकार को बताया गया कि चूंकि फैसला उप्र और कर्नाटक को लेकर है। इसलिए यहां लागू नहीं किया जा सकता। दूसरा तर्क दिया गया कि पदोन्न्ति में आरक्षण देने या न देने का विषय राज्य का है।
परामर्शदात्री समिति में भी उठा मामला
पदोन्न्ति में आरक्षण खत्म करने का मामला 22 दिसंबर 2015 को मंत्रालय में आयोजित परामर्शदात्री समिति की बैठक में भी उठा था। राजपत्रित अधिकारी संघ के अध्यक्ष अशोक शर्मा ने मुख्य सचिव अंटोनी डिसा से मांग की थी। तब डिसा ने हाईकोर्ट में मामला होना बताकर फैसले का इंतजार करने को कहा था।
शर्मा ने बताया कि पिछले साल भी नियम समाप्त कर दिए जाते, तो हालात कुछ अलग होते। अब 2002 से अभी तक पदोन्न्त कर्मचारियों को रिवर्ट करने की नौबत है। सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव मुक्तेश वार्ष्णेय इस बारे में बात करने से बच रहे हैं। सारे सवालों के जवाब खारिज कर सिर्फ एक ही बात कहते है कि मैं इस संबंध में कुछ भी नहीं कह सकता हूं।
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