ग्वालियर। विशेष स्थापना पुलिस (लोकायुक्त) अब फर्जी छापों के लिए बदनाम हो रही है। शिकायतों की गोपनीय जांच के बाद छापामारी करने वाली लोकायुक्त पुलिस की कार्रवाई छापे के बाद की जांच में गलत पाई जाती है। पिछले 5 महीनों में लोकायुक्त के 4 छापे बोगस पाए गए हैं। इन मामलों में खुद लोकायुक्त को ही खात्मा रिपोर्ट पेश करनी पड़ी है।
ताजा मामला लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री आरएन करैया का है। 1981 में आरएन करैया पीएडब्ल्यूडी के सेतु विभाग में सब-इंजीनियर पद पर भर्ती हुए थे। इसके बाद 1986 में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में नियुक्ति हुई। उन्होंने ग्वालियर, भिण्ड, लहार, भोपाल व मंडला में पीएचई कार्यालय में काम किया। भ्रष्टाचार के आरोप में चालान पेश होने पर वह वर्ष 2012 में निलंबित हो गए थे।
इसी बीच लोकायुक्त को आरएन करैया के खिलाफ एक गुप्त शिकायत मिली थी, जिसकी प्राथमिक जांच लोकायुक्त के निरीक्षक अतुल सिंह ने की। उन्होंने पाया कि आरएन करैया के पास आय से अधिक संपत्ति है। लोकायुक्त ने इस मामले में 21 अक्टूबर 2012 को केस दर्ज किया। कोर्ट से अनुमति लेने के बाद 22 अक्टूबर 2012 को आरएन करैया के गोविंदपुरी स्थित मकान पर छापामार कार्रवाई की गई। उनके पास से बैंक के कई खाते, जमीन, नोएडा में मकान, ग्वालियर में मकान, पॉलिसी बरामद हुई थीं। लोकायुक्त ने करैया के यहां से करोड़ों की काली कमाई मिलने का मीडियाई ऐलान किया था।
छापे के बाद लोकायुक्त ने जांच राजेश शर्मा (जांच अधिकारी) को सुपुर्द की। पूरे 4 साल तक लोकायुक्त श्री करैया के खिलाफ सबूत जुटाती रही, लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं लगा। अंतत: लोकायुक्त को क्लीनचिट देनी ही पड़ी। श्री करैया ने आय व व्यय का जो ब्यौरा पेश किया, उसमें 2 लाख 35 हजार का अंतर है। आय से 2 लाख 35 हजार रुपए अधिक खर्च किए हैं। इस आधार पर आय से अधिक संपत्ति का मामला नहीं बनता है। इस खात्मा रिपोर्ट पर 28 जून को सुनवाई होगी।
कुल मिलाकर एक बार फिर लोकायुक्त की प्राथमिक जांच और छापामार कार्रवाई बोगस प्रमाणित हो गई। लोकायुक्त ने खात्मा रिपोर्ट न्यायालय में पेश कर दी है। आरोप यह भी लगाए जा रहे हैं कि लोकायुक्त आरोपी अधिकारियों के साथ सांठ गांठ करके खात्मे लगा रहा है। सच क्या है यह तो लोकायुक्त ही जाने परंतु जो भी है, लोकायुक्त बदनाम हो रहा है।