ग्वालियर। विशेष स्थापना पुलिस (लोकायुक्त) की कार्रवाईयां अब संदेह के दायरे में आने लगीें हैं। लोकायुक्त पुलिस पहले अफसरों के यहां छापामारी करती है, मीडिया में करोड़ों की काली कमाई डिक्लियर भी करती है और बाद में पता नहीं ऐसा क्या होता है कि दागी अफसर को क्लीनचिट दे दी जाती है। ऐसे मामलों में अफसरों के दाग तो धुल रहे हैं परंतु लोकायुक्त पर दाग लगते जा रहे हैं।
- ताजा मामला ग्रामीण विकास प्राधीकरण के महाप्रबंधक सूर्यकांत त्रिपाठी का है। जरा एक नजर देखिए:
- लोकायुक्त को एक गोपनीय शिकायत मिलती है कि त्रिपाठी ने जमकर काली कमाई की है।
- लोकायुक्त पुलिस इस शिकायत की अपने स्तर पर जांच करती है।
- जांच में शिकायत सही पाई जाती है।
- सबूत जुटाने एवं कार्रवाई शुरू करने के लिए छापामारी की जाती है।
- मीडिया में सनसनीखेज आंकड़े परोसे जाते हैं।
- 40 लाख 50 हजार रुपए नकद, 2 करोड़ की संपत्तियां।
- अब विशेष न्यायालय में खात्मा पेश कर दिया गया।
सूर्यकांत त्रिपाठी ने हाउसिंग बोर्ड के उपयंत्री के पद पर कार्य किया। इसके बाद ग्रामीण विकास प्राधिकरण भिंड के कार्यालय में महाप्रबंधक पद पर पदस्थ हो गए। लोकायुक्त को सूर्यकांत त्रिपाठी के खिलाफ एक गुप्त शिकायत मिली। इस शिकायत में बताया गया कि सन 1989 से 2010 तक भ्रष्टाचार कर करोड़ों रुपए की संपत्ति अर्जित की है। लोकायुक्त ने जब इस शिकायत की गुप्त जांच की तो पाया कि सूर्यकांत ने आय से कई गुना संपत्ति अर्जित की है।
इसी आधार पर लोकायुक्त ने 5 अगस्त 2010 को सूर्यकांत त्रिपाठी के थाटीपुर स्थित निवास व उनके बेटे के निवास पर छापामार कार्रवाई की। कार्रवाई में 6 बैंक खाते मिले, जिसमें 6 लाख 55 हजार रुपए जमा थे। सूर्यकांत त्रिपाठी के निवास से 40 लाख 50 हजार रुपए नकद बरामद हुए थे। उसकी संपत्ति को देखकर लोकायुक्त की टीम हैरान रह गई थी और करोड़ों रुपए की संपत्ति बरामद हुई थी।
ऐसे दी गई क्लीन चिट
छापे के बाद सूर्यकांत त्रिपाठी की जांच निरीक्षक अतुल सिंह को दी गई। अतुल सिंह ने आय व व्यय की गणना करके सूर्यकांत त्रिपाठी को क्लीन चिट दे दी। दूसरी बार हुई जांच में लिखा गया कि त्रिपाठी के घर से जो 40 लाख 50 हजार रुपए बरामद किए गए थे। उस वक्त कोई हिसाब नहीं दिया। जांच के दौरान सूर्यकांत ने अपना अभ्यावेदन पेश किया, जिसमें दो एग्रीमेंट पेश किए और बताया कि मकान विक्रय से यह राशि सूर्यकांत त्रिपाठी को मिली थी।
सूर्यकांत त्रिपाठी की मां, पत्नी, बेटा आत्मनिर्भर हैं। तीनों ही रुपए कमा रहे हैं। उनकी आय भी सूर्यकांत की आय में शामिल हो गई।
जो सोना व चांदी बरामद हुआ था, वह उनका स्त्री धन है। उन्होंने स्वयं के पैसे इसकी खरीद की थी।
आय से अधिक संपत्ति की जो गोपनीय शिकायत आई थी, वह फर्जी थी, लेकिन लोकायुक्त के सत्यापन में छापे से पहले आय से अधिक संपत्ति मिली थी।
रवीन्द्र जैन के केस में भी लोकायुक्त संदिग्ध
विशेष सत्र न्यायालय ने परिवहन विभाग के प्रधान आरक्षक रवीन्द्र जैन की खात्मा रिपोर्ट को लौटाया था। इस रिपोर्ट में कोर्ट ने पाया कि लोकायुक्त ने कई गड़बड़ियां की हैं। उसे बचाने की कोशिश की गई है। खात्मा वापस होने के बाद लोकायुक्त ने जांच अधिकारी नहीं बदले हैं। जिसने खात्मा लगाया था, उसी निरीक्षक को जांच दे दी है, जबकि नैतिकता के आधार पर इस जांच को डीएसपी स्तर के अधिकारी को देनी थी।
रवीन्द्र जैन के पास भी छापे में करोड़ों रुपए की काली कमाई का खुलासा हुआ था, लेकिन लोकायुक्त श्री जैन को भी क्लीन चिट दे थी, लेकिन कोर्ट ने लोकायुक्त की चालाकी को पकड़ लिया।
रिश्वत के मामले में भी लोकायुक्त खात्मा लगा चुकी है। राकेश मित्तल की ड्रॉवर से रिश्वत के पैसे बरामद किए थे, लेकिन 10 महीने की जांच के बाद उसके खिलाफ भी लोकायुक्त ने खात्मा लगा दिया।
अमित सिंह, एसपी विशेष स्थापना पुलिस कहते हैं
सूर्यकांत त्रिपाठी का मामला मेरे कार्यकाल का नहीं है। खात्मा रिपोर्ट व चालान लगाने का फैसला मुख्यालय से होता है। पूर्व में यह प्रस्ताव भेजा गया था। जांच अधिकारी ने किस आधार पर खात्मा लगाया है, मुझे जानकारी नहीं है। रवीन्द्र जैन के जांच अधिकारी को अभी नहीं बदला है, क्योंकि कोर्ट ने जांच अधिकारी बदलने का आदेश नहीं दिया है।