
टाईपिंग बोर्ड ने 21 अप्रैल 2013 को प्रदेशभर में टाईपिंग की परीक्षा आयोजित की गई थी। इसमें हुई गड़बड़ी की जांच एसटीएफ ने की। एसटीएफ ने इसमें जिन कर्मचारियों को आरोपी बनाया, उनके खिलाफ अभियोजन की मंजूरी तकनीकी शिक्षा संचालनालय से लेना जरूरी था। लिहाजा, इसकी फाइल जब यहां पहुंची तो तकनीकी शिक्षा विभाग में पदस्थ स्टेनो आलोक सोनी की अभियोजन स्वीकृति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947 के तहत दे दी, जबकि यह कानून 1988 में ही खत्म हो चुका था। अभी नया कानून भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 लागू है।
ऐसे हुआ खुलासा
गुरुवार को विशेष न्यायाधीश काशीनाथ सिंह की अदालत में एसटीएफ ने गुरुवार को 6 आरोपियों के खिलाफ चालान पेश किया। कोर्ट ने जब चालान पर नजर डाली तो पुराने कानून वाली बात सामने आई। यही नहीं, इसी गड़बड़ी पर तकनीकी शिक्षा के संचालक ने तत्परता दिखाते हुए मंजूरी दे दी। हकीकत में किसी भी शासकीय कर्मचारी के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति देते हुए संबंधित अधिकारी को अपना मत देते हुए आदेश जारी करना होता है। जबकि साल 2015 में जारी स्वीकृति पत्र में किसी अधिकारी का नाम नहीं है, बल्कि सिर्फ पद ही लिखा गया है।
क्या है मामला
2013 में हुई परीक्षा में संचालकों और बोर्ड के अधिकारी और कर्मचारियों ने पैसे लेकर अभ्यर्थीयों को परीक्षा पास कराए जाने के आरोप पर एसटीएफ ने जांच की। इनमें से अधिकांश अभ्यर्थीयों ने बोर्ड के प्रमाण-पत्र के आधार पर शासकीय विभागों में नियुक्ति भी पा ली है।
6 में से सिर्फ 2 के खिलाफ पेश हो सका चालान
एसटीएफ टाइपिंग बोर्ड परीक्षा फर्जीवाड़ा मामले में 6 आरोपियों के खिलाफ पूरक चालान पेश करने की तैयारी से आई थी। इनमें टाइपिंग बोर्ड सचिव आशा जादौन, पीडब्ल्युडी में स्टेनोग्राफर ओमप्रकाश मलायन, तकनीकी शिक्षा में स्टेनो रीटा शेजवार, आलोक सोनी और छतरपुर स्थित टाईपिंग सेंटर संचालक महेश गुप्ता और छतरपुर के अभ्यर्थी रजनीश पटेल के नाम शामिल थे। कोर्ट ने जब तकनीकी शिक्षा संचालक द्वारा दी गई अभियोजन स्वीकृति पर सवाल जवाब किया तो एसटीएफ की ओर से सभी शासकीय सेवा से जुड़े आरोपियों का बाद में चालान पेश करने का निवेदन किया गया। कोर्ट ने एसटीएफ के आवेदन को स्वीकृती प्रदान करते हुए ताकीद दी कि वे कोई भी चालान पेश करने से पहले पूरी तरह से कानूनी खामियों को दूर कर लें। कोर्ट में मामले में आरोपी छतरपुर निवासी महेश गुप्ता और रजनीश पटेल के चालान को स्वीकार कर दिया और उन्हें 30-30 हजार की सक्षम जमानत पर छोड़ने के आदेश कर दिए।
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तकनीकी शिक्षा संचालक को अभियोजन स्वीकृति का प्रारंभिक कानूनी ज्ञान नहीं है। इस मामले में एसटीएफ की ओर से कोई गलती नहीं की गई है। दरअसल, अभियोजन स्वीकृति संचालक को ही देनी होती है। लिहाजा, संचालक के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करेंगे।
सुनील श्रीवास्तव, वकील, एसटीएफ