नईदिल्ली। झारखंड राज्य की राजधानी रांची में कुष्ठरोगियों ने भीख में मिले पैसों को जुटाकर अपने लिए तालाब बना लिया। बिना सरकारी मदद के बने इस तालाब की चारों ओर प्रशंसा की जा रही है। सरकार भी प्रशंसा करते हुए कह रही है कि लोगों को आगे आना चाहिए, परंतु एक सवाल और भी गूंज रहा है कि यदि अपनी ही जेब से कुएं, तालाब, स्कूल और अस्पताल बनाने हैं तो सरकार को टैक्स किस बात का दिया जाए। सरकार से आम नागरिकों की जद्दोजहद जारी है। फिलहाल पढ़िए बीबीसी संवाददाता नीरज सिन्हा की यह रिपोर्ट:
भीख में आठ आने, एक रुपए के लिए हम दोनों पहर रिरियाते हैं तुरंत 200 रुपए तालाब के लिए चंदा देना मुश्किल काम था इसलिए कई लोग पांच-दस रुपए करके रोज कमेटी के पास जमा करते रहे। चंचला देवी की ही तरह रांची के पास रहने वाले कुष्ठ रोगियों ने भीख से जुटाए पैसों से तालाब के जीर्णोद्धार का काम शुरू किया है।
इन कुष्ठ रोगियों ने अपनी समस्या का हल खुद निकालने का जिम्मा उठाया है। लॉरेंस की आंखों में रोशनी नहीं, लेकिन कदम-कदम पर पत्नी प्यारी का साथ है। जिंदगी की दुश्वारियों के सवाल पर इस कुष्ठ पीड़ित दंपती के चेहरे पर मुस्कराहट तैर जाती है। दोनों लगभग एक साथ कहते है, "कुदरत ने काया नहीं दिया, ठहरे अपढ़ और भीखमंगे। ये जतन नहीं करते, तो फिर बड़ी विपदा से हमें कौन बचाता।"
उन्होंने कहा, "पानी की किल्लत के बीच भीख के पैसे से हमने तालाब के जीर्णोद्धार की कोशिशें शुरू की हैं। 200-200 रुपए सबने जमा किए हैं, आगे भी देने पड़ सकते है।" यहां रहने वाले दो सौ से अधिक परिवारों की आंखों में इन दिनों एक ही फिक्र है, बस्ती के तालाब को गहरा और चौड़ा करना, ताकि इसमें बारिश का ढेर सारा पानी जमा हो जाए।