बौनी ही गई कांग्रेस

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। पांच राज्यों के विधानसभा परिणामो का निष्कर्ष यही है कि कांग्रेस बड़े झटके साथ बौनी हो गई है। दो बड़े राज्यों असम और केरल में कांग्रेस सत्ता में थी, जहां उसके हाथ से सत्ता निकल गई है। पुडुचेरी में जरूर वह सत्ता में आ गई है, लेकिन यह केंद्र शासित प्रदेश है, और यहां सीमित अधिकारों वाली विधानसभा व राज्य सरकार है। इसके बरक्स भारतीय जनता पार्टी के लिए ये चुनाव खुशियां लेकर आए हैं।

दिल्ली और बिहार की करारी हार के बाद उत्तराखंड के सेल्फ गोल ने भाजपा की राजनीति और उसके रणनीतिकारों की प्रतिष्ठा को काफी संदेहास्पद बना दिया था। इन चुनावों ने पार्टी में उत्साह को वापस लाने का काम किया है। असम में पहली बार भाजपा सरकार बनाने जा रही है, तमिलनाडु में जयललिता की वापसी हुई है, जिससे भाजपा के बेहतर संबंध हैं और केरल विधानसभा में पहली बार भाजपा का एक विधायक होगा। इसके अलावा सभी राज्यों में भाजपा को मिले वोटों का प्रतिशत अच्छा-खासा है, जिसका फायदा उसे सन 2019 के लोकसभा चुनावों में मिल सकता है। पश्चिम बंगाल में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को दस गुना से ज्यादा सीटें मिली हैं, लेकिन दोनों पार्टियों के वोट प्रतिशत में बहुत मामूली-सा फर्क है।

पश्चिम बंगाल में यह कयास लगाए जा रहे थे कि वाम और कांग्रेस का गठजोड़ ममता बनर्जी को अच्छी टक्कर दे सकता है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसकी एक वजह तो यह है कि यह गठजोड़ देर से हुआ और दोनों पार्टियों की ताकत में समन्वय ठीक से नहीं हुआ। वाम मोर्चा और कांग्रेस परंपरागत रूप से पश्चिम बंगाल में एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं और दोनों के बीच समन्वय के लिए जिस तरह के राजनीतिक कौशल की जरूरत थी, वैसी दिखी नहीं। इस गठबंधन का वास्तविक फायदा कांग्रेस को हुआ, जबकि वाम मोर्चा को उससे काफी कम सीटें मिलीं।

ऐसा तब हुआ, जबकि वाम पार्टियों का वोट प्रतिशत कांग्रेस से लगभग दोगुना है। लेकिन इन चुनावों ने दिखा दिया कि अब भी तृणमूल कांग्रेस और बाकी सबके बीच बहुत बड़ा फासला है। असम में भाजपा ने सही रणनीति और अचूक गठबंधन के सहारे कांग्रेस को परास्त किया। असम गण परिषद के साथ गठबंधन भाजपा के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ और सर्वानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना भी सही रणनीति थी। सोनोवाल एक ऐसी जनजाति से आते हैं, जिसकी जनसंख्या काफी कम है और इस वजह से वह असम की जाति, जनजाति और समूहों में बंटी राजनीति में किसी एक गुट या पक्ष के नेता नहीं हैं। बिहार से सबक सीखते हुए असम में स्थानीय नेताओं व मुद्दों को महत्व दिया गया और नरेंद्र मोदी की छवि को दांव पर नहीं लगाया गया। इसके विपरीत कांग्रेस ने लगातार गलतियां कीं, जिससे उसका 15 साल पुराना राज खत्म हो गया।

केरल में तमाम घोटालों और आरोपों में फंसी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार को वोटरों ने नकार दिया। वाम पार्टियों के लिए यह अच्छी खबर है कि पश्चिम बंगाल की तरह केरल में उनकी स्थिति नहीं हुई है और लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की जीत ने उनकी प्रासंगिकता बनाए रखी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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