नक्सलियों ने मनरेगा भुगतान के लिए दिया अल्टीमेटम

सुधीर ताम्रकार/बालाघाट। प्रशासनिक लापरवाही/घूसखोरी और मनमानियां ग्रामीणों को अब नक्सलियों के और नजदीक ले जाने लगीं हैं। सरकारी सुविधाओं और व्यवस्थाओं का विरोध करने वाले नक्सली अब ग्रामीणों को उनका हक दिलाने के लिए सरकार से संघर्ष की स्थिति में आ गए हैं। ग्रामीणों का रुका हुआ मनरेगा मजदूरी का भुगतान दिलाने का काम नेता और अधिकारियों का है परंतु यहां नक्सलियों द्वारा अंजाम दिया जा रहा है। इतना ही नहीं तेंदूपत्ता मजदूरों के हितों में भी नक्सलियों का संघर्ष सामने आने लगा है। 

जिले के नक्सली इलाके में पुलिस द्वारा हाई अर्लट जारी रहने बाद भी कल शनिवार को क्षेत्र में 2 पर्चे मिले है। बरामद हुये इन पर्चो में उत्तर गढचिरौली गोदिया डिविजन कमेटी भाकपा का नाम लिखा हुआ है। पत्रकारों को मिले पर्चों में कई चौंकाने वाले तथ्यों का उल्लेख किया गया है। 

  • क्या लिखा है भाकपा के पर्चे में
  • 7 अप्रेल को हुई मुठभेड में एक नक्सली को गोली लगने का पुलिस का दावा झूठा है। 
  • 15 दिनों के भीतर मनरेगा का भुगतान नही किया गया तो सरपंचों को अपने पद से इस्तीफा देना पडेगा। 
  • जनजागरण गांव के बुर्जुगों सरपंचों और पुलिस का बुना हुआ जाल है। 
  • पुलिस भोलेभाले ग्रामीणों को नौकरी और पैसों का लालच देकर मुखबिरी करा रही है।
  • गांव के युवक युवतियां मुखबिरी कर जनविरोधी और क्रांतिकारी ना बने। 
  • या फिर मुखबिरी करने की सजा भुगतने के लिये तैयार रहे। 
  • जल जंगल जमीन पर सपूर्ण अधिकार हमारा है। 


क्या लिखा है संघर्ष समिति के पर्चे में
दूसरे पर्चे पर आदिवासी किसान मजदूर तेन्दूपत्ता संघर्ष समिति बालाघाट लिखा हुआ है। उसमें तेदूपत्ता मजदूरी बढाने की मांग की गई है।

हम तस्दीक कराएंगे: एसपी 
इस संबंध में अतिरिक्त पुलिस अधिक्षक श्री नीरज सोनी ने कहा की मीडिया के माध्यम से नक्सली पर्चे प्राप्त होने की जानकारी मिली है जिसमें मुखबिरों को धमकी दिये जाने का उल्लेख किया गया है यह बेहद गंभीर मामला है पुलिस पर्चो की तस्दीक करवायेगी पुलिस हर स्थिति से निपटने के लिये अर्लट है तथा जंगल में निरतर सर्चिंग जारी है।

भ्रष्टाचार बढ़ा रहा है नक्सलवाद
प्रशासनिक हलकों में मौजूद भ्रष्टाचार नक्सलवाद को बढ़ावा दे रहा है। ग्रामीणों को उनके अधिकार नहीं मिल रहे हैं। इलाके में राजनीतिक पकड़ कमजोर है अत: न्याय की प्रत्याशा में ग्रामीण अब नक्सलियों के पास जाने लगे हैं। नक्सलवादी भी उनके हितों की खुली लड़ाई लड़ रहे हैं। अब वो लोकतांत्रिक ढंग से आंदोलन/धरना या प्रदर्शन तो कर नहीं सकते अत: बंदूक और बमों के दम पर ग्रामीणों को न्याय दिलाने की बात कर रहे हैं। निश्चित रूप से यह पुलिस के लिए बड़ा संकट है। बहुत जरूरी है कि नक्सली इलाकों में ईमानदार किस्म के प्रशासनिक अधिकारियों की पोस्टिंग हो जो ग्रामीणों को न्याय दे सकें ताकि वो नक्सलियों के पास ना जाएं। 

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