उपदेश अवस्थी @लावारिस शहर। अध्यापक संवर्ग जिस गणना पत्रक का बेसब्री से इंतजार कर रहा था अंतत: वो जारी हो गया। यह किसी बीरबल की खिचड़ी से कम नहीं था, इतना लंबा समय लगा कि कई लोगों की तो उम्मीदें ही टूट गईं। जारी होते ही लोग खुशी से झूम उठे लेकिन यह खुशी तब तक ही रही जब तक खिचड़ी को अध्यापकों ने अपनी थाली में नहीं देखा। जैसे जैसे अध्यापक अपनी थाली में खिचड़ी डालते जा रहे हैं, तेजी से गुस्साए भी जा रहे हैं, क्योंकि खिचड़ी बदबू मार रही है।
6वें वेतनमान को लेकर अध्यापक संवर्ग में क्या क्या नहीं हुआ। एक अध्यापक के कितने टुकड़े हुए यह तो वही जानता है। कभी यह संघ तो कभी वो मंच। प्रदेश के एक कौने से एक नेताजी सिंघम की तरह निकल कर आए, सबने जय जयकार मनाई। फिर कोई दूसरा नेता राउडी बनकर सामने आ गया। सबने उसकी भी जय जयकार मनाई। इस दौरान पुराने पर्दे से शहंशाह भी बाहर निकल आया। सबने उसकी भी जय जयकार मनाई।
फिर सोशल मीडिया पर चला कीचड़ फैंको, श्रेय लूटो का खेल। सारे के सारे नेता इस खेल में पूरी ताकत से जुट गए। कोई ये फोटो अपलोड कर रहा है, कोई वो फोटो। कोई ये दावे कर रहा है, कोई वो दावे। सिंघम सीएम से मिल आया तो राउडी प्रमुख सचिव से। शहंशाह तो सदन में है, उसको शक्तिप्रदर्शन की जरूरत ही क्या। फिर भी प्रदेश भर का दौरा कर डाला। इंदिरा गांधी की तरह भाषण पेले। मेरे खून की बूंद बूंद अध्यापकों के लिए है।
आज गणना पत्रक के प्रिंटआउट लिए लाचार अध्यापक माथा पकड़े बैठा है। समझ नहीं पा रहा है, क्या करे, किस पर गुस्सा जताए। सरकार, जिसने नाइंसाफी कर दी या वो सिंघम, राउडी और शहंशाह, जो इतने समय तक मामू बनाते रहे।