सालों साल क्यूँ चले मुकदमे , कुछ कीजिये

राकेश दुबे@प्रतिदिन। न्यायपालिका बहुत ज्यादा अपेक्षाओं और बेहद कम मानव-शक्ति होने के कारण अपने ही वजन से चरमरा रही है| अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं, और विश्व में सर्वाधिक बैकलॉग हमारे यहां होने का रिकॉर्ड बनता जा रहा  है|आंध्र प्रदेश के एक न्यायाधीश अपना आकलन जता चुके हैं कि मौजूदा बैकलॉग को निपटाने में ही 320 साल लग जाएंगे एक अन्य आकलन कहता है कि अगर तमाम न्यायाधीश खाने-पीने-सोने के समय को भी अदालती कार्यवाही में लगा दें और हर दिन 2400 मामले निबटाने का फैसला कर लें तो भी लंबित मामलों को निबटाने में 35 साल लग जाएंगे| कुछ समय पूर्व दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने कहा था कि दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित 66,452 मामलों में जो 2300 क्रिमिनल अपीलें हैं, उन्हें निबटाने में ही अदालत को 466 साल लग जाएंगे|

इतनी बड़ी संख्या में मामलों के निबटान करने के लिए हमें न्यायाधीशों की संख्या में बढ़ोतरी करना होगी |इस समय न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात का वैश्विक रुझान क्या है? अमेरिका में यह अनुपात बेहद ऊंचा 107 है, और कनाडा में 75 है|भारत में न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात क्या है? 1987 में यह प्रति दस लाख की आबादी पर दस जजों का था| उस साल कुल जजों की संख्या 7675 थी| विधि आयोग का विचार था कि सरकार को इस संख्या को 40 हजार तक बढ़ाना चाहिए| वर्तमान में यह अनुपात 17 जज प्रति दस लाख लोग हैं|

इतने निराशाजनक परिदृश्य में उच्च न्यायालयों में भारी  रिक्तियां हैं, और अनेक उच्च न्यायालयों में क्षमता से 50 प्रतिशत से भी कम संख्या में न्यायाधीश कार्यरत हैं| निचली अदालतों में 4580 न्यायिक पद रिक्त पड़े हैं| यही कारण रहा कि प्रधान न्यायाधीश अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण नहीं रख सके और यह कहते हुए उनका गला रुंध गया कि ‘अगर हमने 170 नाम (उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए) दो महीनों से आपके पास भेजे हुए हैं, तो मुझे समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें क्यों रोका हुआ है?

सिर्फ न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने मात्र से समस्या का समाधान नहीं होगा| देश को  स्वतंत्र, निष्पक्ष, ईमानदार और सक्षम न्यायाधीशों की दरकार है| बीते वर्ष एक मामला प्रकाश में आया था कि सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने तीन सालों में मात्र सात फैसले दिए,दरअसल, हम अभी तक वह पैमाना तैयार नहीं कर पाएं जिसके आधार पर हम अपने न्यायाधीशों के प्रदर्शन का आकलन कर सकें. मामलों के निबटान में विलंब और लंबन अरसे से भारतीय न्यायपालिका में चर्चा का प्रमुख विषय रहे हैं| बीते छह दशकों से न्यायपालिका, न्याय मंत्रालय, प्रख्यात चिंतकों और न्यायविद् ने तमाम रणनीतियां सुझाई ताकि विलंब और लंबन के मुद्दों का समाधान किया जा सके. कुछ समय से न्याय करने की हमारी प्रणाली में कोर्ट प्रबंधन की शुरुआत करने को लेकर चर्चा होने लगी है|

तेरहवें वित्त आयोग ने समग्र न्याय प्रणाली की बेहतरी के लिए कुछ धनराशि का आवंटन किया है. कुछ अन्य पहल में शामिल हैं-अदालतों के कार्य-समय में वृद्धि, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए लोक अभियोजकों और न्यायिक अधिकारियों की क्षमता में वृद्धि, प्रत्येक राज्य में न्यायिक अकादमी की स्थापना या उन्हें मजबूत किया जाना जिससे  न्यायपालिका को अपने प्रशासनिक और क्षमता-निर्माण संबंधी कार्यकलाप में मदद मिल सके|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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