राकेश दुबे@प्रतिदिन। बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने अब संघ यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुक्त भारत की बात कही है | 'संघ-मुक्त भारत' के लिए नीतीश ने यह आह्वान अभी देश की जनता से नहीं, बल्कि तमाम गैर भाजपाई दलों के नेताओं से किया है। तो क्या माना जाए, नीतीश इस सियासी मंत्र से बिहार के बाद अब केंद्र की सत्ता पर आसीन होना चाहते हैं या फिर नीतीश संघ (आरएसएस) फोबिया में जीने लगे हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के जवाब में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरएसएस (संघ) मुक्त भारत का नारा दिया। एडवांटेज कॉन्क्लेव 'बिहार 3.0 उम्मीद की उड़ान' कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुलकर आरएसएस और भाजपा पर हमला बोला। वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता के सवाल पर उन्होंने 'संघ मुक्त भारत' का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की मजबूती और देश की एकता के लिए भाजपा के विरोध में सभी शक्तियों को साथ आना होगा। आज भावनाएं भड़काने की कोशिश हो रही है। जिनका देश की आजादी में योगदान नहीं, वे तिरंगा के मुद्दे को हवा दे रहे हैं। नागपुर में भगवा फहराया जाता है और देश में तिरंगे की लड़ाई लड़ी जा रही है। कश्मीर फिर से वर्ष 2010 जैसा होता जा रहा है। इसका जवाब कौन देगा? हमने एनडीए से सिद्धांतों के आधार पर नाता तोड़ा था।
नीतीश ने सभी दलों को एक छतरी के नीचे आने का आह्वान किया है। इतना ही नहीं, नीतीश ने एनडीए के घटक दलों को भी साधने की कोशिश की। नीतीश ने कहा कि मोदी सरकार में एनडीए के घटकों दलों की भूमिका सर्वविदित है। उन्होंने भाजपा के असंतुष्टों पर भी डोरे डाले और भाजपा विरोधी गठजोड़ में सभी दलों को एक साथ, एक मंच और एक छतरी के नीचे आने का आह्वान किया। नीतीश ने कहा कि गठबंधन का फलक कितना भी बड़ा क्यों न हो, हमारा मकसद लोकतंत्र की रक्षा होनी चाहिए। एक समय आया था, जब लोहिया ने कांग्रेस के खिलाफ सभी दलों को एक करने का संकल्प लिया था। अब भाजपा और आरएसएस के खिलाफ सभी दलों को एकजुट करने के लिए वैसा ही संकल्प जरूरी है।
निश्चित रूप से एडवांटेज कॉन्क्लेव में नीतीश कुमार ने बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी कीं, लेकिन नीतीश को पहली बात तो ये समझनी होगी कि भारतीय राजनीति में आरएसएस और भाजपा का प्रभाव इतना विस्तार नहीं ले पाया कि 'संघ-मुक्त भारत' या 'भाजपा-मुक्त भारत' का नारा लगाना पड़े। दूसरी बात ये कि संघ-मुक्त या भाजपा-मुक्त भारत एक सियासी एजेंडा तो हो सकता है, लेकिन जब इस मुद्दे पर राजनीति के मैदान में उतरेंगे और जनता के दरवाजे पर दस्तक देंगे तो जनता किस रूप में इसे अपनाएगी, कहना मुश्किल है। राजनीति कहती है कि वोट बैंक के लिहाज से इस तरह की रणनीति या एजेंडा कतई लाभ नहीं देने वाला होता है। आप जुमलेबाजी कर राजनीतिक उलट-फेर कर सकते हैं, लेकिन काल्पनिक मुद्दे को वास्तविकता की धार देकर राजनीतिक उलटफेर नहीं कर सकते।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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